पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/२५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१५३. भाषण : अहमदाबादके मिल मजदूरोंकी सभामें

मार्च ५, १९१८[१]

ये तीनों[२] जेल गये और सरकारसे लड़े: किन्तु इन्हें न तो तनख्वाह लेनी थी, न भत्ता । इन तीनोंको कर भी नहीं देना पड़ता था । काछलिया बड़े व्यापारी थे । उन्हें कर नहीं देना पड़ता था । हरबतसिंह करका कानून बननेसे पहले आये थे, इसलिए करके बोझसे वे भी बरी थे । वलिअम्मा जिस जगह रहती थी, वहाँ करका यह कानून उस वक्त तक जारी नहीं हुआ था। फिर भी टेककी खातिर ये लोग सबके साथ लड़ाईमें शामिल हुए थे । आपकी लड़ाई तो स्वार्थकी है । इसलिए आपका इसपर डटे रहना अधिक आसान है । मैं चाहता हूँ कि यह विचार आपको बल दे और मजबूत बनाये ।

[ गुजराती से ]
एक धर्मयुद्ध


१५४. अहमदाबादके मिल मजदूरोंकी हड़ताल

मार्च ६, १९१८

पत्रिका - ९

कल हम तीन सत्याग्रहियोंके दृष्टान्तोंपर विचार कर चुके हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उस लड़ाईमें सिर्फ तीन ही सत्याग्रही थे । २०,००० आदमी एक साथ बेकार हो गये थे, और उनकी वह बेकारी दस-बारह दिनमें दूर नहीं हो गई थी। यह लड़ाई पूरे सात साल तक चली, और इतने समय तक सैकड़ों आदमियोंने डाँवाडोल स्थितिमें रहकर अपनी टेक निभाई। करीब तीन महीने तक २०,००० मजदूर बिना घरबार, बिना वेतनके रहे । कइयोंने अपने पासकी थोड़ी या बहुत-सारी सम्पत्ति बेच डाली । उन्होंने अपनी झोंपड़ियाँ खाली कर दीं, ओढ़ने-बिछानेका सामान, चारपाई और चौपाये वगैरा बेच डाले और कूचपर निकल पड़े। उनमें से सैकड़ोंने कई दिन तक बीस-बीस मीलकी मंजिलें तय की और सिर्फ डेढ़ पाव आटेकी रोटी और ढाई तोले चीनीपर अपने दिन गुजारे। उनमें हिन्दू भी थे, और मुसलमान भी थे । बम्बईकी जुम्मा मसजिदके मुअज्जिनके फर- जंद भी उनमें शामिल थे। उनका नाम इमाम साहिब अब्दुल कादिर बावजीर है।[३] जिन्होंने कभी मुसीबतका मुँह तक नहीं देखा था, उन्होंने जेलकी मुसीबतें सहीं, और जेलके अन्दर रास्तों की सफाई करने, पत्थर तोड़ने वगैराकी मजदूरी की, और महीनों तक बहुत ही सादी

 
  1. यह प्रवचन पत्रिका-८ के संदर्भ में ही था और उसी दिन दिया गया था ।
  2. काछलिया, हरबतसिंह और वलिअम्मा ।
  3. देखिए खण्ड १०, पृ४ १६९