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१५७. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश

मार्च ६, १९१८

वह[१]तुम्हें उलाहने के रूपमें नहीं लिखा गया था। यदि विनोदमें उलाहना भी आ गया हो तो वह भाई महादेवका ही था । उसमें मेरा तो कोई हाथ नहीं है । तुम्हारे कामसे मुझे सन्तोष ही हुआ है । असन्तोष तो नजर ही नहीं आया । तुमसे तो अभी मुझे बहुत-सा काम लेना है ।

[ गुजरातीसे ]
बापूनी प्रसादी


१५८. अहमदाबादके मिल मजदूरोंकी हड़ताल

मार्च ७, १९१८[२]

पत्रिक—१०

अपनी इस स्थिति में ऊपरके सवालका विचार करना बहुत जरूरी है । तालाबन्दीको अभी करीब पन्द्रह दिन हुए हैं; इतनेमें ही कुछ लोग कहने लगे हैं कि उनके पास खानेको नहीं है, कुछ कहते हैं कि वे मकानका किराया भी नहीं चुका सकते। बहुतेरे मजदूरोंके घरोंकी हालत बहुत खराब पाई गई है। उनमें हवा और उजालेका अभाव रहता है । घर पुराने हो गये हैं। आसपास बहुत गन्दगी है। मजदूर साफ कपड़े तक नहीं पहन पाते । कुछ तो धोबीका खर्च न उठा सकनेके कारण गन्दे कपड़े पहनते हैं, और कुछ कहते हैं कि वे साबुनका खर्च बरदाश्त नहीं कर सकते। मजदूरोंके बालक मारे-मारे फिरते हैं। उन्हें अनपढ़ रहना पड़ता है। और कुछ मजदूर तो अपने सुकुमार बालकोंको भी कमाईके कामोंमें लगा देते हैं । यह घोर कंगाली सचमुच शोकजनक है । अकेले ३५ प्रतिशतकी बढ़ोतरी इसका कोई इलाज नहीं। अगर दूसरे उपाय न किये जायें तो सम्भव है कि तनख्वाह दुगनी हो जानेपर भी, कंगाली जैसोकी-तैसी बनी रहे । इस गरीबी के अनेक कारण हैं। आज हम उनमें से कुछका विचार करेंगे। मजदूरोंको पूछनेसे पता चलता है कि जब उनका हाथ तंग होता है, वे फी रुपया एक आनेसे लेकर चार आने तक का ब्याज हर महीने देते हैं। यह एक थर्रा देनेवाली बात है। जो आदमी एक बार भी इस तरहका ब्याज देना कबूल करता है, उसका इसके चंगुलसे छूटना बहुत मुश्किल है । कैसे, सो देखिए। सोलह रुपयोंपर की रुपया एक आनेके हिसाब से ब्याजके सोलह आने हुए। इतना ब्याज देनेवाला मूलधनके बराबर ब्याज एक वर्ष और चार महीने में दे चुकता है । यह ७५ प्रतिशत ब्याज हुआ । वारहसे गोलह प्रतिशत ब्याज देना भी मुश्किल

 
  1. संभवत: वह पत्र जो गांधीजीने उन्हें १४ जनवरी लिखा था देखिए पृष्ठ १३५।
  2. देखिए पत्रिका - ९ का अन्तिम वाक्य ।