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१६०. पत्र : प्राणजीवन मेहताको

मार्च ७, १९१८

भाई प्राणजीवन,

खेड़ा जिलेमें परिणाम तो चाहे जो आये, पर अधिकारी-वर्ग और प्रजा वर्गको भारी शिक्षण मिल रहा है। लोगों में असीम जाग्रति हुई है । करबन्दीकी बात कहना पहले राजद्रोह माना जाता था, लेकिन अब लोग निडर होकर उसकी चर्चा करने लगे हैं । शिक्षित वर्गके जो लोग स्वयंसेवक बने हैं, उन्हें अलभ्य लाभ हुआ है । जिन्होंने कभी गाँव नहीं देखा था, उन्हें लगभग ६०० गाँव देखनेका अवसर मिला । अभी खेड़ा जिलेमें काम पूरा नहीं हुआ । इसी तरह मजदूरों और मालिकोंका मामला चल रहा है । भारतमें जीवनके हरएक विभागमें मेरा प्रवेश हो रहा है। दस हजार मजदूर शान्तिसे रहे और उनमें एक रुपया भी खर्च नहीं करना पड़ा, यह कोई साधारण बात नहीं है; फिर भी यह सही है । लोग समझ गये हैं कि आत्मबलके बराबर दूसरा कोई बल नहीं। दोनों जगह इन दो वाक्योंपर जीत निर्भर है : "तुम हमारे बल-बूतेपर नहीं, बल्कि अपने ही बल-बूतेपर जीतोगे" और "ज्ञानपूर्वक दुःख उठाये बिना नहीं जीतोगे ।"

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तुम्हारा व्यवसायमें[१]ज्यादा समय देना अच्छा है या बुरा, यह केवल हेतुपर निर्भर है । जीवनका कोई बीमा नहीं है । अच्छा काम करनेके लिए रुपया कमायें, परन्तु कमाते-कमाते ही मर जायें तो पछतावा रह जाता है। किन्तु पैसा बढ़ाना ही ध्येय हो और पैसेकी वृद्धि करने में ही अच्छेपनकी कल्पना की हो या व्यापारिक उन्नतिके उद्देश्यसे व्यापारको अधिक फैलाना ही कर्त्तव्य मान लिया हो, तो व्यापार बढ़ाना ही एकमात्र मार्ग है ।

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 
  1. डॉ० मेहताका विचार जहाजी व्यवसाय में लगनेका था ।