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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मजदूरका धन अखूट है, उसे कोई चुरा नहीं सकता, और उसपर मनचाहा ब्याज हमेशा मिला करता है। उसके हाथ-पैर, मजदूरी करनेकी उसकी शक्ति, उसकी एक अखूट पूँजी है । मेहनतपर जो मेहनताना उसे मिलता है, वही उसका ब्याज है। एक सीधा नियम है कि अधिक शक्तिका उपयोग करनेवाला मजदूर आसानीसे अधिक ब्याज कमा सकता है। हाँ, जो आलसी है, उसे जरूर भूखों मरना पड़ता है । उसे निराशा सहनी पड़ सकती है । उद्योगीको एक क्षणकी भी चिन्ता करनेका कोई कारण नहीं रहता । मंगलवारको सुबह सब ठीक समयपर सभामें आइये । सभामें आनेसे आपको अपनी इस स्वतंत्रताकी कुछ अधिक प्रतीति हो सकेगी।

[ गुजरातीसे ]
एक धर्मयुद्ध


१६४. पत्र :जीवनलाल देसाईको[१]

[ अहमदाबाद
मार्च १२, १९१८ से पहले ]

प्रिय मित्र,

मुझे समझाने-बुझानेकी आपको जरूरत ही क्यों पड़ी ?[२]आपको ऐसा सन्देह भी क्यों हुआ कि आप जो कहें उसे यदि में वास्तवमें कर सकता हूँ तो भी नहीं करूँगा । किमी दुराग्रहपर अड़कर तो में अपना काम नहीं कर सकता । संसारके और लोग मुझे गलत समझ सकते हैं, परन्तु आप तो नहीं। मेरे हृदयमें अत्यधिक सहानुभूति है । मेरे लिए यह तालाबन्दी कोई छोटी-मोटी चीज नहीं। मुझसे जितना कुछ बन सकता है, मैं कर रहा हूँ। मेरी एक ही इच्छा यह है कि इसका शीघ्रसे-शीघ्र कोई हल निकल आये इसीके लिए मैं प्रयत्नशील हूँ। पर मेरे मिल मालिक मित्र गत्यावरोधको और लम्बा खींच रहे हैं। मुझको समझाने-बुझानेसे कोई लाभ नहीं -ऐसा मानकर आप मिल मालिकोंको समझाने-बुझानेकी कोशिश क्यों नहीं करते? मजदूरोंके अपमानित होनेसे किसको खुशी होगी ? आप इस बात से निश्चिन्त रहें। शिक्षित और धनिक-वर्गोमें कोई कटुता नहीं रह जायेगी । धनिकोंसे लड़ाई ठाननेका हमारा कोई मंशा नहीं । [

[ गुजरातीसे ]
एक धर्मयुद्ध
 
  1. बैरिस्टर तथा अहमदाबादके सार्वजनिक कार्यकर्ता ।
  2. परिस्थितिके एक बड़े संकटापन्न दौरमें, जबकि मिल मजदूर अपने संघर्षके कष्टोंको काफी अधिक महसूस करने लगे थे, कुछ लोग धीरज हाथसे खोकर ऐसी सलाई भी देने लगे थे कि मजदूरोंको समझा- बुझाकर वेतनमें १५ या २० प्रतिशत वृद्धि स्वीकार करने और समझौता कर लेनेपर राजी करना चाहिए। यह पत्र, और इसके बादका पत्र १२ मार्चको तालाबन्दी समाप्त होनेसे पहले लिखे गये थे ।