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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिखते हैं कि बहुतसे मजदुर कामपर आनेको तैयार हैं। मगर तालाबन्दीके कारण वे कामपर नहीं आ सके थे। मजदूरोंकी रोज-रोज होनेवाली सभाओं और उनकी प्रतिज्ञाके साथ मालिकोंको मिली हुई यह खबर मेल नहीं खाती। या तो मालिकोंके पास पहुँची हुई खबर सच है, या यह सच है कि मजदूर रोज-रोज सभाओं में हाजिर होते हैं, और वे अपनी प्रतिज्ञासे बंधे हुए हैं। प्रतिज्ञा करनेसे पहले मजदूरोंने आगा-पीछा सब सोच लिया है, अतएव अब उन्हें कितना ही लालच क्यों न दिया जाये, और कैसी ही मुसीबतें क्यों न उठानी पड़ें, जबतक ३५ प्रतिशत इजाफा नहीं मिलता, वे कामपर नहीं लौट सकते । इसमें उनका ईमान है । अगर वचनको लाखोंके धनके साथ तोला जाये तो उसमें वचनका पलड़ा ही भारी रहेगा । हमें विश्वास है कि मजदूर इस बातको कभी नहीं भूलेंगे । अपने वचनपर डटे रहने के सिवा मजदूरोंके लिए उन्नतिका दूसरा कोई उपाय है ही नहीं । और, हम तो मानते हैं कि अगर मिल-मालिक समझें तो उनकी उन्नति भी मजदूरोंके प्रतिज्ञा-पालन में ही है । जो अपनी टेकको निबाह नहीं सकते, उन लोगों से काम लेकर आखिर मालिक भी कोई फायदा नहीं उठा सकेंगे। धार्मिक वृत्तिवाला मनुष्य दूसरेकी प्रतिज्ञाको तुड़वानेमें कभी रस नहीं लेता; कभी हाथ नहीं बँटाता । लेकिन आज मालिकोंके फर्जका विचार करने की फुरसत हमें नहीं है । वे अपना फर्ज समझते हैं। हम तो उनसे विनती ही कर सकते हैं; लेकिन मजदूरोंको इस समय अपना फर्ज पूरी तरह समझ लेने की जरूरत है । यह समय फिर लौटकर नहीं आयेगा ।

अब हम देखें कि मजदूर अपनी प्रतिज्ञा भंग करके क्या पा सकेंगे। आजकल हिन्दुस्तान में ईमानदार आदमीको होशियारीके साथ काम करनेपर बीस-पच्चीस रुपये कहीं भी मिल सकते हैं । अतएव मजदूरोंकी बड़ी-बड़ी हानि तो यही हो सकती है कि मालिक हमेशा के लिए उन्हें छोड़ दें, और उनको कहीं दूसरी जगह नौकरी करनी पड़े। समझदार मजदूरको जान लेना चाहिए कि कुछ दिनोंकी कोशिशसे वह कहीं भी नौकरी पा सकेगा। लेकिन हम मानते हैं कि मालिक इस आखिरी हदतक जाना नहीं चाहते है । अगर मजदूर अपनी टेकपर डटे रहेंगे, तो कठोरसे-कठोर दिल भी एक दिन पिघलेगा ।

मुमकिन है कि गैर-गुजराती मजदूरोंको (उत्तर भारतसे और दक्षिण भारत यानी मद्रास से आये हुए मजदूरोंको) इस लड़ाईका पूरा खयाल न हो। हम अपने सार्वजनिक कामों में हिन्दू, मुसलमान, गुजराती, मद्रासी, पंजाबी वगैराका कोई भेद नहीं रखते, न रखना चाहते हैं। हम सब एक ही हैं, अथवा एक होना चाहते हैं। इसलिए गुजरातके बाहरसे आये हुए इन मजदूरोंको हमें हमदर्दीसे इस लड़ाईका मर्म समझाना चाहिए, और उनको यह बता देना चाहिए कि हमारे साथ रहनेमें उनका और सबका हित है ।

[ गुजरातीसे ]
एक धर्मयुद्ध