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१६७.अम्बालाल साराभाईको लिखे पत्रका सारांश[१]

[ साबरमती ]
मार्च १२, १९१८

आपका पत्र मुझे मिल गया और मैंने उसे पढ़कर फाड़ दिया। मैंने यह चाहा ही नहीं कि मजदूरोंपर दबाव डाला जाये। मजदूरोंपर दबाव डालनेवाले लोगोंके सम्बन्धमें आप अधिक निश्चित विवरण लिखेंगे, तो मैं जरूर कुछ बन्दोबस्त करूँगा। मजदूर कामपर जाते हैं या नहीं, इस बारेमें में उदासीन हूँ। किसी भी आदमीको मिलमें जाते हुए जबरन न रोकनेकी हिदायत में देता रहा हूँ। मैं यह कदापि नहीं चाहता कि किसी मजदूरको उसकी इच्छाके विरुद्ध मिलमें न जाने दिया जाये । कोई मजदूर मिलमें जानेकी इच्छा प्रकट करे तो मैं उसे खुद मिलमें छोड़ आनेके लिए तैयार हूँ । मजदूर कामपर जाते हैं या नहीं जाते, इस बारेमें में बिलकुल उदासीन हूँ ।

आपने मुझे जैसा काम सौंप रखा है, उसे देखते हुए मैं आपके साथ रहनेका आनन्द कैसे ले सकता हूँ ? आपके बच्चोंसे मिलनेकी मेरी बहुत इच्छा है, परन्तु अभी तो यह भी कैसे सम्भव है ? यह सब तो भविष्य की बात है ।

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४


१६८. अहमदाबादके मिल मजदूरोंकी हड़ताल

मार्च १३, १२१८[२]

पत्रिका-१३

ऐसी अफवाह हमारे सुनने में आई है कि बहुतेरे मजदुर कामपर जानेको तैयार हैं, लेकिन दूसरे मजदूर उन्हें जोर-जुल्म के साथ, मार-पीटकी धमकी देकर रोके हुए हैं। हरएक मजदूरको हमारी यह प्रतिज्ञा याद रखनी चाहिए कि अगर मजदूर दूसरोंको दबाकर या धमकाकर कामपर जानेसे रोकेंगे, तो हम उनकी मदद न कर सकेंगे । इस लड़ाई में जीत उसीकी होगी, जो अपनी टेकपर अड़ा रहेगा । टेक किसीसे जबरदस्ती नहीं पलवाई जा सकती । यह चीज ही ऐसी है कि जबर्दस्ती हो ही नहीं सकती। अपनी टेकपर कायम

 
  1. महादेवभाईने डायरोमें लिखा है : गांधीजी नहीं चाहते थे कि किसी भी रूपमें इस पत्रकी कोई नकल रखी जाये, किन्तु स्मृति से इसका सारांश तैयार करके रखनेपर उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी ।
  2. यह पत्रिका तालाबन्दी समाप्त होनेके दूसरे दिन निकाली गई थी ।