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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रहकर ही हम आगे बढ़ना चाहते हैं। जो आदमी मारे डरके कोई काम न करे, वह किस बलपर आगे बढ़ सकता है ? उसके पास तो कुछ रहता ही नहीं । अतएव हर मजदुरको यह याद रखना चाहिए कि वह किसी भी दूसरे मजदूरपर किसी प्रकारका दबाव न डाले । अगर दबावसे काम लिया गया, तो सम्भव है कि सारी लड़ाई कमजोर पड़ जाये और एकदम बैठ जाये । मजदुरोंकी लड़ाईका सारा दारोमदार उनकी मांगपर और उनके कार्यकी न्यायोचिततापर है । अगर मांग अनुचित है, तो मजदूर जीत नहीं सकते । और अगर वह उचित है किन्तु उसको पाने के लिए अन्यायसे काम लिया जाये, झूठ बोला जाये, दंगा-फसाद किया जाये, दूसरोंको दबाया जाये, आलस्य किया जाये, और फिर इनसे होनेवाले दुःख उठाने पड़ें, तो उस हालत में भी वे हार जायेंगे। किसीको न दबाना और अपने गुजारेके लिए आवश्यक मजदूरी करना ये इस लड़ाईकी बहुत जरूरी शर्तें हैं ।

[ गुजरातीसे ]
एक धर्मयुद्ध

१६९. भाषण : अहमदाबादको सभामें[१]

मार्च १३, १९१८

मैं श्रीमती एनी बेसेंटका पूरा-पूरा परिचय देनेमें असमर्थ हूँ । मेरा तो यह खयाल है कि कोई भी व्यक्ति उनका परिचय नहीं दे सकता। मैं उन्हें तीस वर्षोंसे जानता हूँ परन्तु इतने वर्षोंसे वे मुझे जानती हों - सो नहीं कहा जा सकता। मैं अपने बाल्यकालसे ही उनके कार्योंका अवलोकन करता आया हूँ । होमरूल शब्द भारतवर्ष में चारों ओर फैल गया है और बड़े-छोटे सभी प्रकारके गाँवोंमें भी उसका प्रवेश हो चुका है - यह सब करामात इन्हीं बहनकी है। मैंने अनेक बार कहा है कि मेरे तथा उनके बीच मतभेद रहे हैं और वे रहेंगे। आज भी बहुत से मतभेद हैं। यदि होमरूल आन्दोलनकी बाग़डोर मेरे हाथ में होती तो मैं उसे कुछ भिन्न ढंगसे संचालित करता । किन्तु मुझसे उनकी पूजा किये बिना, उन्हें सम्मानित किये बिना उनके गुणोंकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जाता । कारण यह है कि उन्होंने अपनी आत्मा भारतको अर्पित कर दी है। वे भारतके लिए ही जीती हैं और यही उनकी महत्त्वाकांक्षा है । उनसे सैकड़ों गलतियाँ हों तो भी हम उनकी इज्जत करेंगे । मैं समझता हूँ कि अहमदाबादने इतना बड़ा उपकार करनेवाली बहनको सम्मानित करके स्वयं अपना अपूर्व मान किया है। आज जो व्याख्यान दिया जानेवाला है उसके विषयको देखते हुए कहा जा सकता है कि उपस्थित श्रोता उसके अनुरूप नहीं हैं। श्रीमती बेसेंटने अभी-अभी मुझसे कहा है कि इस श्रोता समाज के

 
  1. सभाका आयोजन श्रीमती एनी बेसेंटका भाषण सुननेके लिए हुआ था; वे “राष्ट्रीय शिक्षा " पर बोलनेवाली थीं। सभाकी अध्यक्षता गांधीजीने की थी ।