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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समझाऊँ कि आप मजदूरी मजदूरी की है । आज भी हैं, चोर साबित होते हैं । लेकिन यह मैं आपको किस तरह करके अपना पेट भरिये । में मजदूरी कर सकता हूँ, मैंने करना चाहता हूँ, पर मुझे मौका नहीं मिलता। मुझे अभी बहुत-कुछ करना है, इसलिए सिर्फ कसरतके तौरपर थोड़ी मजदूरी कर लेता हूँ। अगर आप मुझसे यह कहें कि हमने तो करघेकी मजदूरी की है; दूसरी मजदूरी हम नहीं कर सकते, तो क्या यह कहना आपको शोभेगा ? हिन्दुस्तानमें इस तरहका वहम घुस गया है। उसूलन यह ठीक है कि एक आदमीको एक ही काम करना चाहिए, लेकिन जब इसका उपयोग बचावके तौरपर किया जाता है, तो बात बिगड़ जाती है । मैंने इस मसलेपर बहुत सोचा है । जब मुझपर दो एक सीधे हमले हुए, तो मैंने सोचा कि अगर मुझे आप लोगोंसे आपका अपना धर्म पलवाना हो, प्रतिज्ञा और मजदूरीकी कीमत आपको समझानी हो, तो मुझे आपके सामने इसका कोई जीता-जागता सबूत पेश करना चाहिए। आपके साथ हम लोग कोई खिलवाड़ नहीं कर रहे हैं; कोई नाटक नहीं दिखा रहे हैं। जो बातें हम आपसे कहते हैं, उन्हें हम स्वयं भी पालनेको तैयार हैं, यह में आपको कैसे समझाऊँ ? में कोई परमात्मा या खुदा नहीं हूँ कि किसी दूसरे तरीकेसे सब आपको दिखा दूं । मैं तो आपके सामने कुछ ऐसा कर दिखाना चाहता हूँ, जिससे आप भी समझ जायें कि इस आदमीके साथ तो साफ बात करनी होगी, नाटक चेटकसे काम नहीं चलेगा। दूसरा कोई लालच या धमकी देकर भी प्रतिज्ञाका पालन नहीं करवाया जा सकता। लालच तो केवल प्रेमका ही दिया जा सकता है। जिसे अपना धर्म प्यारा है, टेक प्यारी है, देश प्यारा है वही अपनी टेकपर कायम रह सकता है, इसे आप समझ सकते हैं ।

मुझे इस तरहकी प्रतिज्ञाएँ लेनेकी आदत है, लेकिन इस डरसे कि कहीं लोग उनकी झूठी नकल न करें, में प्रतिज्ञा करना ही छोड़ देता हूँ । किन्तु मुझे तो करोड़ों मजदू- रोंके सम्पर्क में आना है। अतएव उसके लिए मुझे अपनी आत्माके साथ खुलासा कर लेनेकी जरूरत रहती है । मैं आपको यह दिखाना चाहता था कि आप लोगोंके साथ मुझे खिलवाड़ नहीं करना है ।

मैंने आपको अपने कार्य द्वारा यह दिखानेकी कोशिश की है कि प्रतिज्ञाका जो मूल्य में आँकता हूँ, वही आप भी आँके । आपने एक काम कर दिखाया है। आपके दिलमें यह खयाल आ सकता था : " हमें आपकी प्रतिज्ञासे क्या मतलब? हम टिक नहीं सकते। हम तो कामपर जायेंगे ।" लेकिन आपने यह नहीं सोचा। आपने हमारी सेवाको पसन्द किया । और मैंने आपकी बहुत कीमत आँकी । आपके साथ मरना मुझे सुन्दर लगा; आपके साथ-साथ तरना भी मुझे सुन्दर मालूम हुआ ।[१]

[ गुजरातीसे ]
एक धर्मयुद्ध
 
  1. भाषणका बाकी हिस्सा उपलब्ध नहीं है। गांधीजीके उपवाससे सभी लोग चिन्तित हो उठे थे। मिल मालिकोंने उनसे उपवास छोड़ देनेके लिए बहुत आग्रह किया और वे उनकी खातिर ३५ प्रतिशत भी देने को तैयार हो गये । गांधीजीने इस वातसे इनकार करते हुए कहा, "मुझपर दया करके नहीं, बल्कि मजदूरोंकी प्रतिज्ञाका आदर करके उनके साथ न्याय करनेके लिए उन्हें ३५ प्रतिशत दीजिये ।