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१७५. अहमदाबादके मिल मजदूरोंकी हड़ताल

[ मार्च १६, १९१८ ][१]

पत्रिका -१५

गांधीजी की प्रतिज्ञाका हेतु और अर्थ समझ लेना जरूरी है। याद रखने योग्य पहली बात यह है कि उन्होंने मालिकोंपर असर डालनेके लिए अपना व्रत शुरू नहीं किया । अगर इस हेतुसे व्रत लिया जाये, तो उससे हमारी लड़ाईको धक्का पहुँचेगा और हमारी बदनामी होगी । मालिकोंसे हम इन्साफ चाहते हैं, महज दया नहीं चाहते। जितनी दया चाहते हैं, वह मजदूरोंको मिले तो अच्छा । हम यह मानें कि मजदूरोंपर दया करना मालिकोंका फर्ज है। लेकिन गांधीजीपर दया करके वे मजदूरोंको ३५ प्रतिशत इजाफा दें, और मजदूर उसे लें, तो उसमें हमारी ही हँसी होगी। मजदूर ऐसा इजाफा स्वीकार नहीं कर सकते । अगर गांधीजी मालिकोंके अथवा सर्वसाधारणके साथके अपने सम्बन्धका ऐसा उपयोग करें, तो कहा जायेगा कि उन्होंने अपनी स्थितिका दुरुपयोग किया है। इससे गांधीजीकी प्रतिष्ठा घटेगी। गांधीजी उपवासका मजदूरोंकी तनख्वाहके साथ क्या सम्बन्ध हो सकता है ? ५० आदमी मालिकोंके घर जाकर अनशन करें, किन्तु यदि मजदूरोंको ३५ प्रतिशत इजाफा पानेका हक न हो, तो मालिक उनकी माँरा कैसे स्वीकार कर सकते हैं? अगर इस तरह हक हासिल करनेका रिवाज चल पड़े, तो जन-समाजका काम चलना करीब-करीब असम्भव हो जाये। गांधीजीके इस उपवासपर मिल मालिक न तो ध्यान दे सकते हैं, न उन्हें ध्यान देना चाहिए। साथ ही यह भी नहीं हो सकता कि गांधीजीके ऐसे कार्यका प्रभाव मालिकोंपर बिल्कुल ही न पड़े ।

जिस हदतक यह प्रभाव पड़ेगा, उसका उतना ही दुःख हमें होगा । किन्तु यदि गांधीजीके उपवाससे दूसरे महत्वपूर्ण परिणाम निकलते हों, तो हम उनका त्याग न करें।

जिस हेतुकी सिद्धिके लिए उपवास शुरू किया गया है, उसपर भी थोड़ा विचार कर लें। गांधीजीने महसूस किया कि मजदूरोंके मनमें प्रतिज्ञाका महत्त्व कम होने लगा है। अपनी कल्पित भूखके डरसे उनमें से कुछ प्रतिज्ञा तोड़नेको तैयार हो गये थे । दस हजार आदमियोंका अपनी प्रतिज्ञासे मुँह मोड़ना एक असह्यसी बात है । प्रतिज्ञाका पालन न करनेसे आदमी कमजोर पड़ता है, और अन्तमें अपनी मनुष्यतासे हाथ धो बैठता है । इसलिए आज प्रतिज्ञा-पालनके काममें लोगोंकी भरसक मदद करना, यह हम सबका धर्म बन गया है। गांधीजीने सोचा कि अगर वे उपवास करेंगे, तो यह साबित हो सकेगा कि वे स्वयं प्रतिज्ञाको कितना महत्व देते हैं। फिर मजदूर भूखों मरनेकी बात कर रहे थे । गांधीजीका कथन है कि भूखों मरकर भी प्रतिज्ञा पालनी चाहिए । इसका पालन उन्हें तो सचमुच करना ही चाहिए। और यह तभी सच हो सकता है, जब वे खुद भूखों

 
  1. यह पत्रिका उपवासके दूसरे दिन निकली होगी । उसके अगले दिन, यानी ता० १७ को पत्रिका श्री शंकरलाल करने निकाली थी । ता० १८ के सुबह समझौता हो गया था ।