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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लगता है कि तिलक महाराजके पास यह बड़ी पूंजी है। यह उनका महाधन है। उन्होंने 'गीता रहस्य'[१] ग्रन्थ लिखा है। किन्तु मुझे ऐसा लगता ही रहता है कि उन्होंने भारतको प्राचीन भावनाको, भारतकी आत्माको नहीं पहचाना और इसीलिए इस समय देशकी यह दशा बनी हुई है। उनके मनकी गहराईमें यही बात है कि हम यूरोपीयोंके जैसे बन जायें । आजकल यूरोपकी जैसी शोभा हो रही है - अर्थात् जिनके मनमें यूरोपीय विचार घुस गये हैं, उन्हें यूरोप जितना शोभायमान लगता है-वैसा ही भारतको शोभायमान करना उनका उद्देश्य है। उन्होंने छः वर्ष तक कारावासका कष्ट सहन किया, यूरोपके ढंगकी बहादुरी दिखानेके लिए और इस विचारसे कि जो लोग इस समय हमें सता रहे हैं, वे यह देख लें कि हम जेलमें दस-बीस वर्ष कैसे रह सकते हैं। साइबेरियाकी जेलोंमें रूसके बहुतसे बड़े-बड़े लोग उम्र-भर सड़े, परन्तु वे कोई आत्म-ज्ञानके कारण जेलमें नहीं गये थे। इस तरह जीवन गँवा देना अपना परम धन बेकार गँवा देने जैसा है। तिलक महाराजने कारावासका यह कष्ट आध्यात्मिक दृष्टिसे भोगा होता, तो आज हालत दूसरी ही होती और उनकी जेल यात्रा के परिणाम दूसरे ही होते। मैं उन्हें यही बात समझाना चाहता हूं। बहुत बार अत्यन्त विनयपूर्वक जितना मुझसे कहा जा सकता है उतना मैंने उनसे कहा है। हाँ, मैंने उन्हें यह बात स्पष्ट नहीं कही या लिखी। मैंने उन्हें जो कुछ लिखा है, उसमें मेरा कहना गौण तो जरूर रह जाता है। किन्तु तिलक महाराजकी निरीक्षण-शक्ति इतनी जबरदस्त है कि वे समझ जाते हैं। फिर भी यह बात ऐसी है कि कहकर या लिखकर नहीं समझाई जा सकती। उसका अनुभव करानेके लिए मुझे उन्हें प्रत्यक्ष उदाहरण देना चाहिए। परोक्ष रूपमें मैंने उन्हें कई बार कहा है, परन्तु प्रत्यक्ष दृष्टान्त देनेका अवसर मुझे मिले तो उसे कभी नहीं छोड़ना चाहिए और यह ऐसा ही अवसर है।

ऐसे ही दूसरे व्यक्ति हैं मदनमोहन मालवीय । भारतके नेताओंमें अर्थात् राजनैतिक पुरुषोंमें और जिन्हें हम जानते हैं, उनमें वे इस समय पवित्रतम पुरुष हैं। अदृश्य पवित्र पुरुष तो बहुत होंगे। किन्तु इतने पवित्र होते हुए भी और धर्मका ज्ञान रखते हुए भी उन्होंने भारतकी भव्य आत्माको अच्छी तरह नहीं पहचाना, ऐसा मुझे लगता है। यह मैंने बहुत कह दिया। मालवीयजी यह सुनकर मुझपर क्रोध कर सकते हैं कि 'यह बहुत अभिमानी मनुष्य है।' किन्तु बात बिलकुल सच्ची है, इसलिए इसे कहते हुए मुझे जरा भी हिचकिचाहट नहीं होती। मैंने उनसे बहुत बार कहा है। उनके साथ मेरा बहुत ही प्रेमपूर्ण सम्बन्ध है, इसलिए मैंने उनसे बहुत झगड़ा भी किया है। फिर भी मेरे सारे तर्कके अन्तमें उन्होंने यही कहा है कि यह सारी बात सही है, पर वे उसे मान नहीं सकते। उन्हें भी प्रत्यक्ष उदाहरण देनेका यह अवसर मुझे मिला है। मैं इस समय इन दोनोंको बता सकता हूँ कि भारतकी आत्मा क्या है।

बीस दिनसे में दस हजार मजदूरोंसे मिलता-जुलता रहा हूँ। उन्होंने मेरे सामने खुदा या ईश्वरको बीचमें रखकर प्रतिज्ञा ली है और प्रतिज्ञा लेते समय उन्होंने बहुत उत्साह दिखाया। वे लोग कैसे भी हों, परन्तु यह तो मानते ही हैं कि खुदा या ईश्वर है।

 
  1. मांडले जेलमें लिखित ।