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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

२. ता० २२ से आगे, ३५ प्रतिशत तक, पंच जितना प्रतिशत तय करें, उसके अनुसार इजाफा दिया जाये ।

३. गुजरात् के विद्वत् शिरोमणि, साधुपुरुष, गुजरात कॉलेज के अध्यापक और वाइस प्रिसिपल श्री आनन्दशंकर ध्रुव, एम० ए०, एल एल० बी० पंच नियुक्त किये जायें।

४. पंच महोदयका फैसला तीन महीनेके अन्दर प्रकट हो जाये। इस बीच मजदूरों को २७|| प्रतिशत इजाफा दिया जाये। यानी आधी रकम मजदूर छोड़ें और आधी मालिक छोड़ें।

५. पंच- फैसलेके अनुसार २७ ।। प्रतिशतपर घट-बढ़ लेनी देनी मानी जाये। यानी अगर पंच २७ ।। प्रतिशतसे ज्यादाका फैसला दें, तो मालिक उतना इजाफा मजदूरोंको और दें; और अगर २७।। से कमका फैसला दें, तो मजदूर उतनी रकम मालिकोंको वापस लौटा दें।

इसमें दो बड़ी चीजें हासिल हुई हैं । एक तो मजदूरोंकी प्रतिज्ञाकी रक्षा हो गई, दूसरे यह तय हुआ कि दोनों पक्षोंके बीच किसी महत्त्वके प्रश्नपर झगड़ा खड़ा हो, तो उसका निर्णय हड़ताल द्वारा न करके पंच द्वारा किया जाये । समझौतेमें यह शर्त तो नहीं है कि आगे दोनों पक्ष अपने आपसी झगड़ोंका फैसला पंचकी मारफत ही करायेंगे; लेकिन चूँकि समझौते में पंचको मान्य रखा गया है, इसलिए माना जा सकता है कि ऐसे मौकोंपर आगे भी पंचकी नियुक्ति होगी। कोई यह न माने कि मामूली मामूली बातोंके लिए पंच मुकर्रर किये जायेंगे । मालिकों और मजदूरोंके बीच खड़े होनेवाले मतभेदोंको मिटानेके लिए हमेशा किसी तीसरे पक्षको बीचमें पड़ना पड़े, यह दोनोंके लिए शर्मनाक है । मालिक तो इसे बरदाश्त कर ही नहीं सकते । वे इस शर्तपर अपना धन्धा कभी न चलायेंगे । दुनिया सदासे लक्ष्मीका सम्मान करती आई है और लक्ष्मी सदा सम्मान पायेगी । अतएव अगर मजदूर जरा-जरासी बातोंके लिए मालिकोंको हैरान करेंगे, तो मालिकोंसे उनका कोई सम्बन्ध न रह सकेगा । हम मानते हैं कि मजदूर ऐसा कभी करेंगे ही नहीं । हम यह कह देना जरूरी समझते हैं कि मजदूर कभी बिना सोचे हड़ताल न करें। अगर वे हमसे बिना पूछे हड़ताल करेंगे, तो हम उनकी मदद न कर सकेंगे। पूछा गया है कि एक दिन ३५ प्रतिशत लेकर बैठ जानेमें प्रतिज्ञाका पालन क्या हुआ ? यह तो बालकों को बहलाने-फुसलाने जैसी बात हुई। कुछ समझौतों में ऐसा हुआ है । लेकिन इसमें ऐसा नहीं हुआ। हमने जानबूझकर, समयका विचार करके, एक ही दिनके ३५ प्रतिशत मंजूर किये हैं । हम ३५ प्रतिशत लिये बिना कामपर नहीं जायेंगे, इसके दो अर्थ होते हैं । एक तो यह कि हम हमेशा ३५ प्रतिशत इजाफा चाहेंगे, उससे कम कभी मंजूर नहीं करेंगे; दूसरा यह कि हम ३५ प्रतिशत लेकर कामपर जायेंगे, फिर वह एक दिनके लिए भी मिले, तो काफी है। जिसने निश्चय किया हो कि हमेशा के लिए ३५ प्रतिशत मांगने में शुद्ध न्याय है, और उतना पानेके लिए जिसके अन्दर अनन्त शौर्य हो, वह तो तभी अपनी प्रतिज्ञा सफल हुई समझेगा, जब उसे ३५ प्रतिशत हमेशाके लिए मिलेंगे। लेकिन हमारा निश्चय ऐसा नहीं था । हम पंचसे न्याय करानेको हमेशा तैयार थे । ३५ प्रतिशतका निश्चय हमने एकतरफा विचार करके किया था । ३५ प्रतिशतकी सलाह देनेसे पहले हम मालिकोंका पक्ष उन्होंके मुँह से सुन लेना चाहते थे । दुर्भाग्यसे वैसा न हो सका । इसलिए हमने जितना