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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अगर आप इजाजत देंगे, तो आपमें से जिन्हें कुछ बुरी आदतें पड़ी हुई हैं, उनकी उन आदतोंको सुधारनेमें कुछ मदद करनेका हमारा इरादा है । हम आपको और आपके बालकोंको तालीम देनेकी भी उम्मीद रखते हैं। हम चाहते हैं कि आपकी नैतिकता बढ़े, आपकी और आपके बच्चोंकी तन्दुरुस्ती बढ़े और आपकी माली हालत सुधरे । अगर आप इजाजत देंगे, तो हम इसके लिए आवश्यक काम शुरू करेंगे ।

मजदूरोंकी बड़ीसे बड़ी जीत तो यह है कि भगवानने—खुदाने—उनकी टेक या लाज रख ली है। जिसका ईमान रह गया, उसका सब—कुछ रह गया । ईमान जाये और दुनियाका राज भी मिले, तो वह धूलके बराबर है।

[ गुजराती से ]
एक धर्मयुद्ध


१८६. पत्र : एक सार्वजनिक कार्यकर्त्ताको

मार्च १९, १९१८

भाईश्री,

आपका पत्र मिला। अगर आपको मेरे हाथों न्याय मिला ही नहीं, तो आप मेरा त्याग क्यों नहीं करते ? आपसे मैंने जो बात कही, वह सलाहके रूपमें ही कही थी। मैंने आपसे कहा था कि मैंने जो कुछ कहा उसपर आप तभी चलें जब आप उसे मानें । आपने मेरी सलाह पसन्द की, इसीलिए सार्वजनिक कार्य छोड़नेका निश्चय किया। अब आपको मेरी सलाहमें कठोरताके सिवा और कुछ न दिखाई देता हो, तो आप मेरी सलाहको उठाकर ताकमें रख सकते हैं । अब मेरी सलाह है कि आप जैसे काम कर रहे थे उसी तरह फिर करें; यह मैं रोषमें नहीं लिख रहा हूँ, बल्कि ठीक समझकर लिख रहा हूँ । आपमें पहले कही हुई बातको याद रखनेकी शक्ति नहीं है, इसलिए मुझे लगता है कि अभी तो आपको केवल अपना स्वतन्त्र मार्ग ही ग्रहण करना चाहिए। इसीसे आपकी उन्नति होगी। आप मेरी सलाहको भी आज्ञा मानें और यह समझें कि उससे जरा भी इधर-उधर नहीं हुआ जा सकता, तो आपकी अधोगति होगी। मेरे खयालसे आपके लिए ठीक मार्ग होमरूलकी अपनी प्रवृत्ति में गिरफ्तार होना ही है और आप उसीको ग्रहण करें। आप यह निश्चित समझें कि यदि आप सम्मेलनमें और ऐसे ही अन्य कार्योंमें पूरी तरह संलग्न हो जायेंगे तो मैं तनिक भी रोष नहीं करूँगा । आप जब मेरी सलाह और मेरी आज्ञाके बीचका भेद जान लें, तब मेरी सलाह भी लेते रहें। मैंने यह पत्र केवल आपके चित्तको शान्ति देनेके लिए लिखा है, दुःखी करनेके लिए नहीं ।

मोहनदास गांधी

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४