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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस स्थितिमें लोगोंको क्या करना चाहिए ? जिनकी फसल रुपये में चार आनेसे कम हुई हो उन्हें नम्रतापूर्वक सरकारसे यह कह देना चाहिए :"हम इस अन्यायको सहन नहीं कर सकते । फसल मारी गई है; फिर भी हम दे दें और झूठे बनें यह नहीं हो सकता । यदि सरकारको जुल्म करके लगान वसूल करना हो तो भले ही करे" आप लोगोंको यह सलाह देनेके लिए ही यह सभा बुलाई गई है।

यह जिला बहुत सुन्दर है । लोगोंके पास पैसा है । यह हरा-भरा भी खूब है । बिहारके अतिरिक्त पेड़ पौधोंसे भरा-पूरा ऐसा सुन्दर उपवन मैंने अन्यत्र नहीं देखा ।

जहाँ बिहारको प्रकृतिने सुन्दर बनाया है, यह जिला स्वयं अपने किसानोंकी लगन और निजी मेहनतसे सुन्दर बना है। इस जिलेमें ही ऐसे निपुण और उद्योगी किसान हैं कि उन्होंने प्रदेशको ऐसे सुन्दर उपवनका रूप दे दिया है। इसपर हम गर्व कर सकते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि फसल न हुई तो भी लोगोंको लगान देना चाहिए। जिलेका ऐसा उद्योगी वर्ग [गरीबीमें ] दबता जा रहा है। ऐसा समय आ गया है जब लोग खेती छोड़कर मजदूरी करने लगे हैं। इस प्रकार खेती छोड़कर मजदूरी करना बड़ी दुःख- जनक स्थिति है । जिस देशके किसानोंको ऐसा करना पड़ता है उस देशका अधःपतन ही समझना चाहिए ।

असलमें जो फसल होती है उसीमें से लगान दिया जाना चाहिए। सरकार फसल खराब होनेपर भी दबावसे लगान वसूल करे यह असह्य है । किन्तु इस देशमें यह नियम ही बन गया है कि सरकारका मत हमेशा ठीक होना ही चाहिए। लोग चाहे जितने सचाईपर हों तो भी सरकार अपनी मनमानी करती है— यह स्थिति असह्य है । यदि बात न्यायकी है तब तो यह ठीक है कि वह दूसरोंसे स्वीकार कराई जाये किन्तु यदि वह अन्यायपूर्ण है तब तो वह बदली ही जानी चाहिए। किसानों और जाँच करनेवालोंकी गवाहीसे पता चलता है कि फसल हुई ही नहीं; फिर भी सरकार कहती है कि फसल अच्छी हुई है। इस स्थितिमें लोगोंको सरकारसे यह कहनेका अधिकार है कि उनके भी आँखें हैं, कान हैं और उन्हें भी बुद्धि मिली है और वे अधिकारियोंके अन्यायके सामने कदापि न झुकेंगे। यह बात मानने योग्य नहीं है कि लोग एक वर्षका लगान मुलतवी करवाने और इस प्रकार एक वर्षका व्याज बचानेके लिए झूठ बोलेंगे। अधिकारी जो यह कहते हैं कि हजारों लोग झूठ बोलते हैं, यह असह्य है । इसलिए हमें यह सिद्ध कर देना चाहिए कि न्याय—दृष्टिसे हमारा आग्रह उचित है । ऐसी स्थितिमें मेरी सलाह यह है कि यदि सरकार हमारी मांग मंजूर न करे तो हमें सरकारसे कह देना चाहिए कि हम लगान नहीं देंगे और इसके लिए जो कुछ कष्ट सहने पड़ेंगे उन्हें सहनेके लिए तैयार हैं।

जिन-जिन जातियोंका उत्थान हुआ है उन्हें पहले कष्ट सहने पड़े हैं । यदि लोगोंको अपनी जमीनें छोड़नी पड़ें तो उन्हें छोड़कर उनको कष्ट सहनके लिए तैयार हो जाना चाहिये। कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि यह तो विद्रोह या राजद्रोह कहा जायेगा । किन्तु इसमें ऐसी कोई भी बात नहीं है। इसमें हमें कष्ट तो सहना है; किन्तु द्रोह कुछ नहीं है। फसल न होनेपर भी डरकर लगान दे दें, यह तो कायरता है। हम मनुष्य हैं, पशु नहीं हैं। सत्यकी खातिर दृढ़तापूर्वक साफ 'न' कहनेका नाम ही सत्याग्रह है ।