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भाषण : नडियादमें

हम लोग आज यहाँ सत्याग्रहकी नींव रखकर उसपर मण्डप रचनेकी आशा लेकर इकट्ठे हुए हैं। हमें सरकारको लगान नहीं देना है, बल्कि उससे जूझना है । और जूझने में हमारे ऊपर जो भी कष्ट आयें उन्हें सहनेके लिए तैयार रहना है। इसमें हमारे ऊपर जो भी कष्ट आनेकी संभावना है उनपर विचार कर लेना उचित है :

१. सरकार हमारा सामान बेचकर लगान वसूल कर सकती है।
२. चौथाई जुर्माना देना पड़ सकता है।
३. इनामकी जमीनोंको जब्त किया जा सकता है, और
४. लोग उद्दण्डता करते हैं, ऐसा कहकर सरकार उन्हें जेल भेज सकती है।

"उद्दण्डता"शब्द सरकारका है और वह मुझे बहुत अखरता है । जो सच्ची बात कहे उसे उद्दण्ड कैसे कहा जा सकता ? वह उद्दण्ड नहीं बल्कि वीर है । सम्पन्न आसामी सुविधा होनेपर भी गरीबकी रक्षाकी खातिर लगान न दे; यह उद्दण्डता नहीं, बल्कि वीरता है। ऐसा करते हुए उसे गाँव भी छोड़ना पड़े तो वह छोड़ देगा और जो उसके लिए तैयार है वही इस व्रतको ले भी सकता है ।

सत्याग्रहकी प्रतिज्ञा लेना बहुत कठिन है; किन्तु उसे पूरा करना उससे भी अधिक कठिन है। लोग प्रतिज्ञा लेकर उसे तोड़ें और ईश्वरसे विमुख हों यह मुझे असह्य लगता है । आप जब मुझे धोखा देंगे या झूठी प्रतिज्ञा करेंगे तब मुझे अत्यन्त दुःख होगा और उस दुःखके आवेशमें मुझे कड़ा कदम भी उठाना पड़ सकता है। मैं उपवास कर सकता हूँ। मुझे उपवाससे दुःख न होगा । कोई मुझे धोखा दे, उसके दुःखसे मुझ उपवासका दुःख कम लगता है। सत्याग्रहमें प्रतिज्ञाका मूल्य सबसे अधिक होता है, और उसका पालन अन्त तक करना चाहिए। ईश्वरके नामपर ली गई प्रतिज्ञा कदापि भंग नहीं की जा सकती। और यदि मेरी आत्माहुतिसे हजारों लोगोंकी प्रतिज्ञाका पालन होता हो तो यह देह भले ही जाये। जिसे लड़ना है उसे दृढ़ निश्चय करना चाहिए। यदि कोई यह कहता है कि "यथासम्भव तो डटा रहूँगा; किन्तु जब बहुत ज्यादा जुल्म किया जायेगा तब कह नहीं सकता", तो मुझे इससे दुःख नहीं होता । प्रतिज्ञा भंग करके मुझे आघात पहुँचानेकी अपेक्षा यदि कोई रातमें आकर मेरी गर्दन काट दे तो मैं उसे क्षमा कर दूंगा। जो मेरी गर्दन काटेगा उसे क्षमा करनेके लिए में ईश्वरसे प्रार्थना करूँगा। किन्तु जो प्रतिज्ञा भंग करके मुझे आघात पहुँचायेगा उसे में कदापि क्षमा न करूँगा ।

इसलिए मैं आप सब भाइयोंसे विनयपूर्वक कहता हूँ कि आप इस सम्बन्धमें जो भी निर्णय करें उसे अत्यन्त सावधान होकर करें। जो लोग अपनी प्रतिज्ञापर दृढ़ रहेंगे, वे ही उठेंगे। इस प्रकार आप ऊपर उठेंगे तो सरकार आपका आदर करेगी और यह समझेगी कि ये लोग अपनी प्रतिज्ञाका पालन करनेवाले हैं, उसको भंग करनेवाले नहीं । प्रतिज्ञा भंग करनेवाले न तो देशके कामके होते हैं, न सरकारके कामके और न ईश्वरके कामके ।

इस कारण मैं आप लोगोंकी सम्मति लेना और आपसे पूछना चाहता हूँ कि आप लड़ने के लिए तैयार हैं या नहीं। मैं प्रतिज्ञापत्र तैयार करूँगा । जिन भाइयोंकी