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१९१. पत्र : वाइसरायके निजी सचिवको

सेंट स्टीफेंस कॉलेज
दिल्ली
मार्च २५, १९१८

सेवामें
महामहिम वाइसरायके निजी सचिव
[ महोदय, ]

में बयान नहीं कर सकता कि अली भाइयोंके इस मामलेको लेकर मुझे कितनी दिमागी परेशानी रही है, परन्तु आज सुबह आपसे बातचीत करके मुझे बड़ी राहत और शांन्ति मिली। यह देखकर कितनी खुशी हुई कि आपको मेरी बात समझनेमें थोड़ी भी देर नहीं लगी। यदि किसी औरकी जानकारीके बिना ही उनकी रिहाईका आदेश भेज दिया जाये तो वह सरकारका एक बड़ा प्रशंसनीय कार्य माना जायेगा । इस ढंगसे उनकी रिहाई हो जानेसे उन तमाम उत्तेजनापूर्ण प्रदर्शनोंसे भी बचा जा सकता है जो अन्य किसी प्रकारसे उनकी रिहाई होनेपर उनके स्वागतमें आयोजित किये ही जायेंगे ।

उनकी रिहाई होनी चाहिए। उसके कुछ कारण ये हैं :
(क) उनको इसलिए नजरबन्द रखा जा रहा है कि वे सरकारके खिलाफ कुछ न कर सकें, यह उद्देश्य तो अपने-आपमें विफल हो जाता है क्योंकि वे अपनी मरजीके मुआफिक लोगोंसे पत्र-व्यवहार तो करते ही हैं और सन्देश भी भेजते हैं ।
(ख) उनकी नजरबन्दीसे दिन-दिन उनका प्रभाव बढ़ता ही है।
(ग) उनकी नजरबन्दीसे उनके मित्रोंके दिलमें कटुता बढ़ती है और आम मुसलमानोंका असन्तोष और गहरा होता जाता है, जिसमें हिन्दू भी कुछ हदतक उनके साथ हैं।
(घ) हजारों मुसलमानोंपर मौलाना अब्दुल बारी साहबका काफी अधिक असर है । धर्म सम्बन्धी चीजोंमें वे मुसलमानोंके सलाहकार हैं और सरकार अली भाइयोंको रिहा करके, मौलानाको अपने पक्षमें कर सकती है।
(ङ) जहाँतक मेरी जानकारी है, दोनों भाइयोंकी इच्छा-शक्ति दृढ़ है, उनका खानदान बड़ा ऊँचा है और वे सुसंस्कृत तथा ज्ञान-सम्पन्न हैं। शिक्षित मुसलमानोंपर उनका बड़ा असर है और वे स्वयं काफी खुले दिमागके और सीधी बात कहनेवाले लोग हैं । उनको नजरबन्द करना एक भारी गलती थी । सरकारको तो सदा ही ऐसे व्यक्तियोंको अपने पक्षमें रखनेकी जरूरत है । और मेरी विनम्र रायमें तो उनको नजरबन्द रखनेसे कोई फायदा नहीं हो सकता ।