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पत्र : अखबारोंको

मजदूरोंके संगठनसे मोर्चा ले सके । अतएव एक दृष्टिसे हमारी जाँच-पड़ताल एकतरफा थी। फिर भी हमने मालिकोंके पक्षको ध्यान में रखनेका यत्न किया । हम इस निश्चय पर पहुँचे कि ३५ प्रतिशतका इजाफा उचित माना जा सकता है। मजदूरोंको अपना आँकड़ा बतानेसे पहले हमने अपनी जाँचका परिणाम मिल मालिकोंको बतलाया और उनसे यह भी कहा कि अगर वे उसमें कोई भूल सुझायेंगे, तो हम उसे सुधार लेनेको तैयार हैं। लेकिन उन्होंने हमारे साथ किसी प्रकारका समझौता करना पसन्द ही न किया । उन्होंने अपने जवाब में यह बताया कि बम्बईके मालिकों और सरकारकी तरफसे जो दर दी जाती है, वह हमारे द्वारा ठहराई हुई दरसे बहुत कम है। मैंने महसूस किया कि उनके जवाबका यह हिस्सा अनावश्यक था । अतएव एक विराट् सभामें[१] मैंने ऐलान किया कि मिल मजदूर ३५ फीसदी इजाफा मंजूर करेंगे और यहाँ यह ध्यान में रखने योग्य है कि मजदूरोंको महामारीके कारण उनकी मजदूरीपर ७० फीसदी इजाफा मिलता था और उन्होंने अपना यह इरादा जाहिर किया था कि बढ़ती हुई मँहगाईके आधार पर वे ५० प्रतिशत से कम इजाफा मंजूर नहीं करेंगे । परन्तु उनसे कहा गया कि वे अपने ५० प्रतिशत और मिल मालिकोंके २० प्रतिशतके बीचकी इस दरको मंजूर करें। (बिल्कुल संयोगकी बात है कि हमने जो दर निश्चित की वह दोनोंके बीचकी थी।) थोड़ी बुदबुदा- हटके बाद सभाने ३५ प्रतिशतका इजाफा लेना स्वीकार किया, इसके साथ ही यह भी मान लिया गया था कि जिस क्षण मिल मालिक पंचकी मारफत फैसला कराना स्वीकार कर लें, उसी क्षण मजदूर भी वैसा ही करें। इसके बाद यानी पिछली २६ फरवरीके बादसे रोज हजारों आदमी गाँवके कोटके बाहर एक पेड़की छाया तले इकट्ठे होते थे । उनमें से कई तो बड़ी दूरसे पैदल चलकर आते थे, और सच्चे दिलसे परमात्माको साक्षी रखकर ३५ प्रतिशतसे एक पाई भी कम न लेनेका अपना निश्चय मजबूत करते थे । उन्हें पैसे की कोई मदद नहीं दी गई थी। अब यह तो हर कोई समझ सकता है कि ऐसी हालत में उनमें से कईको भूखे रहना पड़ता था और जबतक वे बेकार थे, उन्हें कोई कर्ज भी न देता था । दूसरी तरफ, उनके सहायकोंकी हैसियतसे हमने यह निश्चय किया कि अगर उनमें से काम करने योग्य लोग कड़ी मेहनत-मजदूरी करके अपना गुजारा करने को तैयार न हों, और हम चन्दा इकट्ठा करके उसका उपयोग उनके भरण-पोषण में करें, तो उससे हम उनको नुकसान ही पहुँचायेंगे। जिन लोगोंने साँचोंपर काम किया था, उनको रेत या ईंटकी टोकरियोंको ढोनेकी बात समझाना बहुत कठिन था। वे यह काम करते तो थे, लेकिन बड़ी नाराजीके साथ । मिल मालिकोंने भी अपने दिल कठोर बना लिये थे । उन्होंने भी २० प्रतिशतसे ज्यादा न देनेका निश्चय कर लिया था, और मजदूरों को फुसलाकर उनसे घुटने टिकवानेके लिए अपने आदमी लगा रखे थे । तालेबन्दीके शुरू में ही हमने काम न करनेवालोंकी मदद न कर सकनेका ऐलान कर दिया था, लेकिन इसके साथ हमने उन्हें यह विश्वास भी दिलाया था कि उन्हें खिलाकर और पहनाकर ही हम खायेंगे और पहनेंगे। इस तरह २२ दिन बीत गये। भूखकी तकलीफका और मिल मालिकोंके जासूसोंका असर काम करने लगा । शैतान उनको बहकाने लगा, उनसे

 
  1. देखिए “अहमदाबादके मिल मजदूरोंकी हडताल", फरवरी २६, १९१८ ।