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पत्र : अखबारोंको

कि उनमें से कुछकी मित्रताका सौभाग्य मुझे प्राप्त है, लेकिन अपने इस कामसे अब में इस योग्य भी नहीं रह गया हूँ। मैं यह भी समझता था कि मेरे इस कार्यके कारण गलतफहमी बढ़नेका डर है । मेरे लिए यह सम्भव न था कि मैं उनके निर्णयपर अपने उपवासके प्रभावको पड़नेसे रोकूँ । दूसरे, उनके परिचयके कारण मेरी जिम्मेदारी इतनी बढ़ गई थी कि मैं उसे उठाने में असमर्थ था। आम तौरपर इस तरहकी लड़ाईमें मजदूरोंके लिए जो राहत में उचित रूपसे हासिल कर सकता था, उसीके लिए यहाँ मैं असमर्थ हो उठा। मैं जानता था कि मिल मालिकोंसे मैं कमसे कम ले सकूँगा, और मजदूरों द्वारा की गई प्रतिज्ञाके तत्त्वोंकी सिद्धिके बदले उसके स्थूल अर्थकी सिद्धिसे ही मुझे सन्तोष करना पड़ेगा, और हुआ भी वही । मैंने तराजूके एक पलड़े में अपनी प्रतिज्ञाके दोष रखे, और दूसरेमें गुण । मानव-प्राणीके बिलकुल निर्दोष कर्म तो बिरले ही हो सकते हैं। मैं जानता था कि मेरा काम तो खास तौरपर दोषभरा है । मैंने देखा कि हमारी आनेवाली सन्तान हमारे बारेमें यह कहे कि दस हजार आदमियोंने बीस-बीस दिनतक ईश्वरको साक्षी रखकर जो प्रतिज्ञा की थी, वह अचानक तोड़ डाली, इसकी अपेक्षा मिल मालिकोंकी स्वतन्त्रताको और उनकी स्थितिको अनुचित रीतिसे विषम बनाने में मेरी जो बदनामी होगी, वह ज्यादा अच्छी है । मेरा दृढ़ विश्वास है कि जबतक लोग फौलादकी तरह मजबूत नहीं बनते, और जबतक दुनिया उनकी टेकको 'मीड' और 'फारसी' जातियोंके कानूनकी तरह अटूट और अचल नहीं समझती, तबतक वे एक राष्ट्र नहीं बन सकते। मित्रोंकी राय चाहे जो बनी हो, तथापि इस समय तो मैं यही मानता हूँ कि आगे भी कभी ऐसा मौका आया, तो जैसा कि इस पत्र में कहा गया है, मैं इसी ढंगसे काम करनेमें हिचकूँगा नहीं ।

इस पत्रको समाप्त करनेसे पहले मैं दो व्यक्तियोंके नामोंका उल्लेख करना चाहता हूँ । हिन्दुस्तान उनपर गर्व कर सकता है । श्री अम्बालाल साराभाई मिल मालिकोंके प्रतिनिधि थे । वे एक सुयोग्य सज्जन, बड़े सुशिक्षित और सजग व्यक्ति हैं। साथ ही वे दृढ़ निश्चयी भी हैं। उनकी बहन अनसूयाबेन मिल मजदूरोंकी प्रतिनिधि थीं। उनका हृदय कुन्दनकी तरह निर्मल है और गरीबोंके लिए उनके दिलमें बहुत दया है। मिल- मजदूर उन्हें पूजते हैं, और उनकी बातको कानूनका-सा मान देते हैं । ऐसी किसी लड़ाईके बारेमें मैं नहीं जानता, जिसमें कटुता नाम मात्रकी ही हो, और दोनों पक्षोंके बीच इतना सौजन्य रहा हो। इस मधुर परिणामका श्रेय मुख्यतः उस सम्बन्धको है जो श्री अम्बालाल साराभाई और अनसुयाबेनने इस संघर्षके साथ बनाये रखा था ।

आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
लीडर, ३-४-१९१८