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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आन्दोलनका मंशा जन-जीवनसे सम्बन्ध रखनेवाले मामलोंमें जनता द्वारा अपनी बात सुनाये जानेके अधिकारपर आग्रह करना है ।

जनता जानती है कि माननीय श्री जी० के० पारेख और श्री वी० जे० पटेलने गुजरात -सभाके आमन्त्रणपर और उसकी सहायतासे, भारत सेवक समाजके सर्वश्री देवघर, जोशी और ठक्करके साथ इस सम्बन्धमें जाँच-पड़ताल की थी। उनकी जाँच-पड़ताल प्रारम्भिक और संक्षिप्त ही हो सकती थी और इसीलिए वह कुछ ही गाँवोंतक सीमित थी। लेकिन उनकी जाँचके परिणामसे सिद्ध हो गया कि अधिकांश गांवोंमें फसल चार आनेसे कम हुई थी। चूँकि उनकी जाँच काफी विस्तृत नहीं थी, इसलिए उसके बारेमें शंकाएँ की जा सकती थीं और की भी गई। इसलिए मैंने लगभग २० सुयोग्य, अनुभवी, निष्पक्ष और प्रभावशाली तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियोंकी सहायता लेकर पूरी तरह जाँच करना प्रारम्भ किया। मैं स्वयं ५० से अधिक गाँवोंमें जाकर जितना हो सकता था, ज्यादासे ज्यादा लोगोंसे मिला और मैंने उन गाँवोंमें जाकर उनके खेत देखे । गाँववालों से हर तरहकी पूछताछ करनेके बाद में इसी निष्कर्षपर पहुँचा कि उनकी फसल चार आने से कम रह गई है। मैंने देखा कि मेरे पास आनेवाले लोगोंमें से कुछ ऐसे भी थे जो बढ़ा- चढ़ाकर कही गई बातों और वक्तव्योंमें काट-छाँट करनेके लिए तैयार थे। वे जानते थ कि सत्यसे डिगनेकी उनको क्या कुछ कीमत चुकानी पड़ेगी। रबीकी फसल और खेतों में खड़ी खरीफकी फसलके बारेमें किसानों द्वारा दिये गये बयानोंकी सचाई मैंने अपनी आंखोंसे देखी। मेरे सहयोगियोंने भी ऐसे ही तरीके अपनाये थे । इस तरह लगभग ४०० गाँववालोंसे पूछताछ की गई और केवल कुछको छोड़कर अन्य सभी जगह हमने फसल चार आनेसे कम ही पाई; और केवल तीन जगह हमें छः आनेसे अधिक फसल मिली। खरीफकी फसलके बारेमें हमने यह तरीका अपनाया था कि अलग-अलग प्रत्येक गाँवकी कुल उपज का अन्दाज करके फिर देखा जाये कि उन गाँवोंमें सामान्यतया हरसाल कितनी फसल होती रही है। किसानोंके बयानोंको सही मान लेनेपर, जाँचका यही तरीका सोलहों आने खरा बैठता है. किसी भी दूसरे तरीकेको अवैज्ञानिक करार दिया जाना चाहिए और उसे छोड़ दिया जाना चाहिए। मैं पहले ही बतला चुका हूँ कि अपनी जाँचके तरीकेमें मैंने अतिशयोक्तिकी गुंजाइश नहीं रहने दी थी। खेतोंमें खड़ी रबीकी फसल की जाँच तो हमने अपनी आँखोंसे फसल देखकर की थी और ऊपर बतलाये गये तरीकेसे उसका मिलान कर लिया था । सरकारतो अपने निर्धारणका आधार आँखसे देखकर लगाये गये अनुमानको ही बनाती है, इसलिए उसमें अटकलकी बड़ी गुंजाइश रह जाती है। इतना ही नहीं उसपर कुछ बुनियादी किस्मकी आपत्तियां की जा सकती हैं, जो मैंने जिला कलक्टरको लिखे अपने पत्र में गिनाई हैं। मैंने उनसे अनुरोध किया था कि वे बड़थल गाँवको कसौटी बनायें। बड़थल जिलेका एक प्रसिद्ध और सामान्यतया खाता-पीता गाँव है, उसके पाससे रेलवे लाइन गुजरती है और वह एक व्यापारिक केन्द्रके समीप स्थित है । मेरा सुझाव था कि यदि उस गाँवकी फसल चार आनेसे कम निकले, जो कि मैं समझता हूँ कि निकलेगी, तो अन्य अपेक्षाकृत प्रतिकूल स्थितिवाले गाँवों में वह चार आनेसे अधिक हो ही नहीं सकती। अनुरोधके साथ मैंने एक सुझाव भी दिया था कि जाँचके समय मुझे उपस्थित रहनेकी इजाजत दी जाये । उन्होंने जांच तो की पर