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वक्तव्य : खेड़ाकी परिस्थितिके बारेमें समाचारपत्रोंको

मेरा सुझाव नहीं माना, इसलिए उनकी जाँच एकतरफा रही। कलक्टरने उस गाँवकी फसलके बारेमें एक बड़ी ब्यौरेवार रिपोर्ट तैयार की है, जिसका मैंने अपनी समझसे बड़ी सफलताके साथ खण्डन कर दिया है । मैं समझता हूँ कि सरकारका अनुमान शुरूमें बारह आनेका था, लेकिन कलक्टरने कमसे कम अनुमान सात आनेका किया है। कलक्टरने फसलका अनुमान लगानेके लिए जो गलत तरीके अपनाये हैं और जिनकी ओर मैंने उनका ध्यान आकर्षित किया है, यदि उनकी ओर ध्यान दिया जाये तो उनके अपने हिसाब से भी अनुमान छ: आनेसे कम बैठेगा और किसानोंके अनुसार वह चार आनेसे कम बैठेगा। कलक्टरकी रिपोर्ट और मेरा उसका जवाब दोनों ही इतने प्राविधिक हैं कि जनता उनको समझ नहीं पायेगी । परन्तु मैंने सुझाव दिया है कि चूंकि सरकार और किसान दोनों ही अपनी-अपनी बातको सही मानते हैं, इसलिए यदि सरकार लोकमतकी जरा भी परवाह करती है तो उसे जाँच करनेके लिए एक ऐसी निष्पक्ष समिति नियुक्त करनी चाहिए जिसमें किसानोंके प्रतिनिधि भी शामिल हों; या फिर सरकारको जनताकी बात मान लेनी चाहिए। सरकारने दोनों ही सुझाव ठुकरा दिये हैं और वह लगान वसूलीके लिए अत्याचारपूर्ण तरीके अपनानेका आग्रह करती है । यहाँ मैं इसका भी उल्लेख कर दूं कि इस बीच वे अत्याचारपूर्ण तरीके पूरी तौरपर तो कभी बन्द नहीं किये गये और कहीं-कहीं रैयतने सिर्फ दबावके कारण लगान अदा भी कर दिया । तलाटी उनके मवेशी हाँक ले जाते थे और निर्धारित लगानकी अदायगीके बाद ही मवेशी लौटाये गये हैं । एक जगह तो मैंने एक बड़ी दर्दनाक घटना देखी । एक किसानकी एक दुधारू भैंस उससे छीन ली गई थी, और मेरे उस गाँव में संयोगवश पहुँचनेपर ही वह वापस की गई । वह भैंस ही उस किसानकी सबसे बड़ी सम्पत्ति थी और उसीसे उसकी रोजकी रोटी चलती थी। ऐसे बीसियों मामले हो चुके हैं । और यदि जनताकी सही आवाज उठाई नहीं जाती तो निःसन्देह ऐसे और भी मामले होते रहेंगे । प्रार्थनाके जरिए कष्ट निवारण करानेके सभी उपाय विफल हो चुके हैं। कलक्टर, कमिश्नर और यहाँतक कि परमश्रेष्ठ तक से इस सम्बन्धमें भेंट की जा चुकी है। इसके बारेमें अन्तिम सुझाव यह दिया गया था, कि हालाँकि अधिकांश गाँवोंको हक है कि उनमें पूरे लगानकी वसूली मुलतवी कर दी जाये, फिर भी सिवाय उन गाँवोंके जहाँ सभी मानते हैं कि फसल छ: आनेसे ऊपर हुई है, जिले-भरमें आधे लगानकी वसूली मुलतवी कर दी जाये इस कृपापूर्ण रियायत के साथ ही यह घोषणा की जा सकती है कि सरकार आशा करती है कि जिन लोगोंके पास गुंजाइश हो वे खुद ही बकाया लगान अदा कर देंगे; हम कार्यकर्ता लोग ऐसे किसानोंको अदायगी करनेके लिए समझायेंगे। इससे केवल बहुत ही गरीब किसानोंको संरक्षण मिलेगा। मैं पूरे विश्वासके साथ कह सकता हूँ कि इस सुझावको स्वीकार कर लेनेपर सरकारको बल मिलेगा और उसकी साख भी बढ़ जायेगी । लोकमतको ठुकरानेसे असन्तोष ही बढ़ेगा। खेड़ाके भयभीत किसानों-जैसे लोगोंमें अन्दर ही अन्दर असन्तोष सुलगता रहेगा, और इस तरह उनको पस्त कर देगा । वर्तमान आन्दोलनका उद्देश्य ऐसी गलत स्थितिको बचाने की कोशिश करना ही है, क्योंकि वह सरकार और जनता दोनोंके लिए बड़ी अपमानपूर्ण स्थिति होगी। सरकार अपनी स्थिति और तथाकथित प्रतिष्ठाको जमानेके लिए क्या करना सोच रही है ? उसके पास राजस्व संहिता है जिसमें उसे बड़ी