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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

व्यापक शक्तियाँ प्रदान की गई हैं और जिनके अनुसार रैयतको राजस्व अधिकारियोंके फैसलोंके खिलाफ कोई अपील करनेका अधिकार भी नहीं है। जिस तरह के मामले दर-पेश हैं, जिनमें रैयत सिद्धान्तको लेकर चल रही है और अधिकारी लोग प्रतिष्ठाके सवालपर डटे हुए हैं; उनमें इन शक्तियोंका प्रयोग करना व्यायकी भावनाका दुरुपयोग करना होगा, औचित्यकी हर सीमासे इनकार करना होगा। संहितामें प्रदान की गई शक्तियाँ ये हैं :

१. तुरत-फुरत फैसला करनेका अधिकार ।
२. लगानके एक-चौथाईके बराबर जुर्माना वसूल करनेका अधिकार।
३. रैयतवारी ही नहीं, इनामी या सनदिया जमीनकी भी जब्तीका अधिकार; और किसीको हवालात में रखनेका अधिकार ।

इन उपायोंका एक-एक करके या सभीका एक-साथ प्रयोग किया जा सकता है और जनताको यह सुनकर आश्चर्य होगा कि अन्तिमको छोड़कर बाकी दोनों शक्तियोंको लागू करनेका नोटिस सरकार जारी कर चुकी है। इस प्रकार यदि किसीके पास हजारों रुपये के मूल्य की दो सौ एकड़ मौरूसी भूमि हो, जिसपर वह थोड़ा लगान अदा करता हो और यदि वह सिद्धान्तकी खातिर निर्धारित लगान अपनी ओरसे अदा करनेसे इनकार करे और उसके लिए विनम्रतासे लेकिन जोरदार विरोध प्रदर्शित करते हुए कानून द्वारा विहित दण्डको भोगनेके लिए तैयार हो तो अधिकारी उसकी सारी जमीन जब्त कर सकता है। कानूनका पालन करते हुए यदि व्यवस्थित ढंगसे अवज्ञा की जाये, तो उसका पुरस्कार यह तो नहीं ही दिया जाना चाहिए कि सारी जमीन जब्त कर ली जाये । यह तो बदला लेना हुआ । ऐसी परिस्थितिमें यदि ठीक ढंगसे काम किया जाये तो उसके फलस्वरूप चतुर्दिक प्रगति होगी और सरकारकी किसान-प्रजामें साहस पैदा होगा, वह सरकारसे दुराव-छिपाव नहीं करेगी और उसमें अपनी इच्छा-शक्ति भी होगी ।

खेड़ाके किसान जिस बातको उचित और न्यायपूर्ण समझते हैं, उसके लिए उन्होंने संघर्ष छेड़नेका साहस किया है, और में इस न्यायपूर्ण संघर्षमें उनकी सहायता करनेके लिए समाचारपत्रों और जनताको आमंत्रित करता हूँ । जनताको यह भी ध्यानमें रखना चाहिए कि खेड़ा में इस बार जैसी भयंकर प्लेग फैली है वैसी पहले कभी नहीं फैली थी और उसने जनसंख्याका दशांश नष्ट कर दिया है । लोग अपने-अपने घर छोड़कर बाहर खास तौरपर खड़ी की गई फूसकी झोंपड़ियोंमें बसर कर रहे हैं, जिससे उनका खर्च भी काफी बढ़ गया है। कुछ गाँवोंमें तो मरनेवालोंकी संख्या भी काफी अधिक है । [ अनाजकी ] कीमतें चढ़ी हैं; लेकिन फसल खराब हो जानेके कारण वे उसका फायदा नहीं उठा सकते; और उसका सारा नुकसान तो उन्हें भुगतना ही पड़ता है । खेड़ाकी जनताको आपके पैसेकी इतनी आवश्यकता नहीं जितनी कि एक दृढ़, सर्वसम्मत और दो-टूक लोकमतकी है ।[१]

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, १-४-१९१८
  1. यह वक्तव्य ३-४-१९१८ के यंग इंडिया में भी प्रकाशित हुआ था।