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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं हैं । प्रसन्नताकी बात है कि इन्दौरमें सब कार्य हिन्दीमें होता है । पर क्षमा कीजियेगा, प्रधान मन्त्री साहबका जो पत्र आया है, वह अंग्रेजीमें है । इन्दौरकी प्रजा यह बात नहीं जानती होगी, पर मैं उसे बतलाता हूँ कि यहाँ अदालतोंमें प्रजाकी अर्जियाँ हिन्दीमें ली जाती हैं, पर न्यायाधीशोंके फैसले और वकील-बैरिस्टरोंकी बहस अंग्रेजीमें होती है । मैं 'पूछता हूँ कि इन्दौरमें ऐसा क्यों होता है ? हाँ, में यह मानता हूँ कि अंग्रेजी राज्यमें यह आन्दोलन सफल नहीं हो सकता; यह ठीक है; पर देशी राज्योंमें तो सफल होना ही चाहिए। शिक्षित वर्ग, जैसा कि माननीय पंडितजीने अपने पत्र में दिखाया है, अंग्रेजीके मोहमें फँस गया है और अपनी राष्ट्रीय मातृभाषासे उसे असन्तोष हो गया है। पहली माता [ अंग्रेजी ] से हमें जो दूध मिल रहा है, उसमें जहर और पानी मिला हुआ है, और दूसरी माता [ मातृभाषा ] से शुद्ध दूध मिल सकता है। बिना इस शुद्ध दूधके मिले हमारी उन्नति होना असम्भव है । पर जो अन्धा है, वह देख नहीं सकता; गुलाम यह नहीं जानता कि बेड़ियाँ किस तरह तोड़े । पचास वर्षोंसे हम अंग्रेजीके मोहमें फँसे हैं । हमारी प्रजा अज्ञानमें डूबी रही है । सम्मेलनको इस ओर विशेष रूपसे खयाल रखना चाहिए। हमें ऐसा उद्योग करना चाहिए कि एक वर्षमें राजकीय सभाओंमें, कांग्रेसमें प्रान्तीय भाषाओं में और अन्य सभा समाज और सम्मेलनोंमें अंग्रेजीका एक भी शब्द सुनाई न पड़े। हम अंग्रेजीका व्यवहार बिल्कुल त्याग दें । अंग्रेजी सर्वव्यापक भाषा है, पर यदि अंग्रेज सर्वव्यापक न रहेंगे, तो अंग्रेजी भी सर्वव्यापक न रहेगी। हमें अब अपनी मातृभाषाकी और उपेक्षा करके उसकी हत्या नहीं करनी चाहिए। जैसे अंग्रेज अपनी मादरी जबान अंग्रेजीमें ही बोलते और सर्वथा उसे ही व्यवहारमें लाते हैं, वैसे ही मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप हिन्दीको भारतकी राष्ट्रभाषा बननेका गौरव प्रदान करें । हिन्दी सब समझते हैं। इसे राष्ट्रभाषा बनाकर हमें अपने कर्त्तव्यका पालन करना चाहिए। अब मैं अपना लिखा हुआ भाषण पढ़ता हूँ ।

श्रीमान् सभापति महाशय, प्यारे प्रतिनिधिगण, बहनो और भाइयो,

आपने मुझे इस सम्मेलनका सभापतित्व देकर कृतार्थ किया है। हिन्दी साहित्य की दृष्टिसे मेरी योग्यता इस स्थानके लिए कुछ भी नहीं है, यह मैं खूब जानता हूँ । मेरा हिन्दी भाषाका असीम प्रेम ही मुझे यह स्थान दिलानेका कारण हो सकता है। मैं उम्मीद करता हूँ कि प्रेमकी परीक्षामें मैं हमेशा उत्तीर्ण होऊँगा ।

साहित्यका प्रदेश भाषाकी भूमि जाननेपर ही निश्चित हो सकता है। यदि हिन्दी भाषाकी भूमि सिर्फ उत्तर प्रान्तकी होगी, तो साहित्यका प्रदेश संकुचित रहेगा। यदि हिन्दी भाषा राष्ट्रीय भाषा होगी, तो साहित्यका विस्तार भी राष्ट्रीय होगा । जैसे भाषक वैसी भाषा । भाषा-सागर में स्नान करनेके लिए पूर्व-पश्चिम, दक्षिण-उत्तरसे पुनीत महात्मा आयेंगे, तो सागरका महत्त्व स्नान करनेवालोंके अनुरूप होना चाहिए । इसलिए साहित्यकी दृष्टिसे भी हिन्दी भाषाका स्थान विचारणीय है ।

हिन्दी भाषाकी व्याख्याका थोड़ा-सा खयाल करना आवश्यक है। मैं कई बार व्याख्या कर चुका हूँ कि हिन्दी भाषा वह भाषा है, जिसको उत्तरमें हिन्दू व मुसलमान बोलते हैं, और जो नागरी अथवा फारसी लिपिमें लिखी जाती है। यह हिन्दी एकदम संस्कृतमयी नहीं है, न वह एकदम फारसी शब्दोंसे लदी हुई है। देहाती बोलीमें जो