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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हिन्दुस्तान में अज्ञात नहीं है । तो भी हमें मालूम है कि हमारे कई विद्वान् नेताओंका अभिप्राय है कि कुछ वर्षोंतक तो एक अंग्रेजी ही राष्ट्रीय भाषा रहेगी। इन नेताओंसे हम विनयपूर्वक कहेंगे कि अंग्रेजीके इस मोहसे प्रजा पीड़ित हो रही है । अंग्रेजी शिक्षा पानेवालोंके ज्ञानका लाभ प्रजाको बहुत ही कम मिलता है, और अंग्रेजी शिक्षित वर्ग और आम लोगोंके बीच बड़ा दरियाव आ पड़ा है ।

कहना आवश्यक नहीं कि मैं अंग्रेजी भाषासे द्वेष नहीं करता हूँ। अंग्रेजी साहित्य-भंडारसे मैंने भी बहुत रत्नोंका उपयोग किया है । अंग्रेजी भाषाकी मारफत हमें विज्ञान आदिका खूब ज्ञान लेना है । अंग्रेजीका ज्ञान भारतवासियोंके लिए बहुत आवश्यक है। लेकिन इस भाषाको उसका उचित स्थान देना एक बात है, उसकी जड़ पूजा करना दूसरी बात है ।

हिन्दी-उर्दू राष्ट्रीय भाषा होनी चाहिए, इस बातको सिर्फ स्वीकार करनेसे हमारा मनोरथ सिद्ध नहीं हो सकता है। तो फिर किस प्रकार हम सिद्धि पा सकेंगे ? जिन विद्वानोंने इस मण्डपको सुशोभित किया है, वे भी अपनी वक्तृतासे हमको इस विषय- में जरूर कुछ सुनायेंगे। में सिर्फ भाषा प्रचारके बारेमें कुछ कहूँगा । भाषा प्रचारके लिए 'हिन्दी-शिक्षक' होना चाहिए। हिन्दी-बंगाली सीखनेवालोंके लिए एक छोटी-सी पुस्तक मैंने देखी है । वैसी मराठीमें भी है। अन्य भाषा-भाषियोंके लिए ऐसी किताबें देखने में नहीं आई हैं। यह काम करना जैसा सरल है, वैसा ही आवश्यक है । मुझे उम्मीद है। कि यह सम्मेलन इस कार्यको शीघ्रतासे अपने हाथमें लेगा। ऐसी पुस्तकें विद्वान् और अनुभवी लेखकोंके द्वारा लिखवानी चाहिए ।

सबसे कष्टदायी मामला द्राविड़ भाषाओंके लिए है । वहाँ तो कुछ प्रयत्न ही नहीं हुआ। हिन्दी भाषा सिखानेवाले शिक्षकोंको तैयार करना चाहिए। ऐसे शिक्षकोंकी बड़ी ही कमी है। ऐसे एक शिक्षक प्रयागसे आपके लोकप्रिय मन्त्री भाई पुरुषोत्तम दासजी टण्डनके द्वारा मुझे मिले हैं।

हिन्दी भाषाका एक भी सम्पूर्ण व्याकरण मेरे देखनेमें नहीं आया। जो हैं सो अंग्रेजीमें विलायती पादरियोंके बनाये हुए हैं। ऐसा एक व्याकरण डॉ० केलॉगका रचा हुआ है । हिन्दुस्तानकी अन्यान्य भाषाओंका मुकाबला करनेवाला व्याकरण हमारी भाषामें होना चाहिए । हिन्दी-प्रेमी विद्वानोंसे मेरी नम्र विनती है कि वे इस त्रुटिको दूर करें । हमारी राष्ट्रीय सभाओं में हिन्दी भाषाका ही इस्तेमाल होना आवश्यक है । कांग्रेसके कार्यकर्त्ताओं और प्रतिनिधियों द्वारा यह प्रयत्न होना चाहिए। मेरा अभिप्राय है कि यह सभा ऐसी प्रार्थना आगामी कांग्रेसमें उसके कर्मचारियोंके सम्मुख उपस्थित करे ।

हमारी कानूनी सभाओं में भी राष्ट्रीय भाषा द्वारा कार्य चलना चाहिए। जबतक ऐसा नहीं होता, तबतक प्रजाको राजनीतिक कार्योंमें ठीक तालीम नहीं मिलती है । हमारे हिन्दी अखबार इस कार्यको थोड़ा-सा करते तो हैं, लेकिन प्रजाको तालीम अनुवादसे नहीं मिल सकती है। हमारी अदालतोंमें जरूर राष्ट्रीय भाषा और प्रान्तीय भाषाका प्रचार होना चाहिए । न्यायाधीशोंकी मारफत जो तालीम हमको सहज ही मिल सकती है, उस तालीमसे आज प्रजा वंचित रहती है ।