पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/३१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह विचार नहीं करते वे नष्ट हो जाते हैं। गति ही प्रगति है और उसीमें हमारी उन्नति है । हम यों समझते हैं कि हमारे लिए यूरोप-खण्डसे जो बड़े-बड़े शोध हुए हैं उनसे हम उन्नति कर लेंगे; पर यह केवल भ्रम है। हम ऐसे मुल्कके रहनेवाले हैं जो अभी तक अपनी सभ्यतापर निर्भर रह सका है। यूरोपकी कई सभ्यताएँ नष्ट हो गईं, पर हमारा यह भारतवर्षं अबतक अपनी सभ्यताका साक्षी होकर बना है । सब विद्वान् साक्षी देते हैं कि भारतवर्षकी जो सभ्यता हजारों वर्ष के पहले थी वही अब भी है । पर अब हमें सन्देह होने लगा है कि हमारा विश्वास हमारी सभ्यतापर नहीं है। हम रोज उठकर संध्या-वन्दन आदि करते हैं, अपने पूर्वजोंके बनाये हुए श्लोकोंका पाठ करते हैं, पर हम उनका रहस्य नहीं जानते । हमारी श्रद्धा दूसरी ओर झुकती चली जा रही है ।

जबतक संसार चलता रहेगा तबतक पांडवों और कौरवोंका युद्ध भी चलता रहेगा । प्रायः सब धर्म ग्रंथों में लिखा है कि शैतान और देवताओंका युद्ध हमेशा चलता रहेगा । प्रश्न यह है कि हम अपनी तैयारी किस तरह करें। मैं आप लोगों से यह कहने आया हूँ कि आप अपनी सभ्यतापर विश्वास करें और उसपर दृढ़ रहें। ऐसा करनेसे हिन्दुस्तान सारे संसारपर विजय पा लेगा । (हर्षध्वनि)

हमारे नेता कहते हैं कि पश्चिमके साथ युद्ध करनेके लिए पश्चिमकी रीति ग्रहण करनी होगी। पर स्पष्ट समझिए, इससे हिन्दुस्तानकी सभ्यता नष्ट हो जायेगी। जिस हिन्दुस्तानको आप नहीं पहचानते हैं वह हिन्दुस्तान आपकी आधुनिक प्रवृत्तिसे विरत है । मैंने सफर करके हिन्दुस्तानकी प्रवृत्तिको जाना है और मुझे मालूम हुआ है कि अपनी प्राचीन सभ्यतापर अब भी उसका विश्वास बना हुआ है । जिस स्वराज्यकी ध्वनि हम सुन रहे हैं और उसके लिए जिस ढंगसे काम किया जा रहा है उससे स्वराज्य नहीं मिलेगा। कांग्रेस-लीगकी स्कीम तथा इससे भी बढ़िया कोई स्कीम हमें स्वराज्य नहीं दिला सकती । स्वराज्य तो हमें अपने जीवनसे मिलेगा। वह माँगनेसे नहीं मिल सकता । हम यूरोपकी नकल करके किसी तरह लाभ नहीं उठा सकते ।

यूरोपकी सभ्यता आसुरी है, यह हम देख रहे हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण आधुनिक दारुण युद्ध है । यह इतना भीषण है कि महाभारतका युद्ध इसके सामने कोई चीज नहीं। हमें इससे सावधान होना चाहिए और याद रखना चाहए कि हमारे ऋषियोंने हमें अचल और अखंडित तत्त्व दे रखे हैं कि हमारी सारी प्रवृत्ति देवी होनी चाहिए, और उसका मूल धर्ममें होना चाहिए। हमें उसीका पालन करना चाहिए। जबतक कि हम धर्मका पालन नहीं करेंगे, कितनी भी बड़ी-बड़ी स्कीमें हम बना डालें-मॉण्टेग्यु साहब हमें यह कह दें कि हम तुम्हें आज ही पूर्ण स्वराज्य देते हैं-तो भी हम कभी सफल मनोरथ नहीं हो सकते; हम ऐसे स्वराज्यको बरदाश्त नहीं कर सकते। हमें तो चाहिए कि हमारे ऋषि-मुनियोंने हमारे लिए जो वारसा [ वसीयत ] रख छोड़ा है उसकी हम सिद्धि करें ।

हम सब कोई संसारमें देख सकते हैं कि जैसी तपश्चर्या भारतमें हुई थी, वैसी संसारमें कहीं नहीं हुई । अगर हम हिन्दुस्तानके लिए साम्राज्य भी चाहते हैं तो उसे अन्य उपायोंसे नहीं, पर संयमसे ले सकते हैं। निश्चय समझ रखिए कि अगर हमारा जीवन संयममय हो जायेगा तो हम जो चाहेंगे प्राप्त कर सकेंगे ।