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प्राचीन सभ्यता

 

सत्य और अहिंसा ही हमारे ध्येय हैं। ‘अहिंसा परमो धर्मः’ से भारी शोध दुनियामें दूसरा नहीं है। जबतक हम संसारके व्यवहारोंमें रहते हैं― जबतक हमारी आत्माका व्यवहार शरीरके साथ रहता है, तबतक कुछ-न-कुछ हिंसा हमसे होती ही रहती है; पर जिस हिंसाको हम छोड़ सकते हैं हमें उसे छोड़ देना चाहिए। जिस धर्ममें जितनी ही कम हिंसा है, समझना चाहिए कि उस धर्ममें उतना ही ज्यादा सत्य है। हम अगर भारतका उद्धार कर सकते हैं तो सत्य और अहिंसासे ही कर सकते हैं। बम्बई के गवर्नर लॉर्ड विलिंग्डनने एक समय कहा था कि जब मैं हिन्दुस्तानी लोगोंसे मिलता हूँ तब मुझे बड़ी निराशा होती है; वे अपने दिलकी बात नहीं करते, पर मेरे दिलकी बात करते हैं; इससे मैं असली हालत नहीं जान सकता। बहुत-से लोगोंकी यह आदत होती है कि वे हृदयके भावोंको छिपाकर बड़े आदमीके रुखपर बात करते हैं। पर वे इससे अपनी आत्माको कितना धोखा देते हैं, सत्यका भारी घात करते हैं, यह समझते नहीं। जैसी तुम्हारे दिलमें हो वैसी ही बात करो। विवेकके विरुद्ध जाना धृष्टता है। चाहे राज्यका मिनिस्टर हो, चाहे उससे भी बड़ा आदमी हो, सत्य और अपने दिलकी बात कहनेमें रत्तीभर संकोच मत करो। हरएकके साथ सत्य और अहिंसाका बरताव करो।

प्रेम एक ऐसी जड़ी-बूटी है कि कट्टर दुश्मनको भी मित्र बना देती है और यह बूटी अहिंसासे प्रकट होती है। सुषुप्त अवस्थामें जिस चीजका नाम अहिंसा है, जाग्रतावस्थामें उसीका नाम प्रेम है। प्रेमसे द्वेष नष्ट हो जाता है। क्या मुसलमान, क्या अंग्रेज, सभीके साथ हमें प्रेम करना चाहिए। यह बात अवश्य है कि हम गोरक्षा करें; पर मुसलमानोंके साथ लड़ाई कर हम ऐसा नहीं कर सकते। मुसलमानोंको मारनेसे हम गौका बचाव नहीं कर सकते। हमें प्रेम ही से काम करना चाहिए और इसीसे हमें कामयाबी होगी। जबतक हमारी अचल श्रद्धा सत्य, प्रेम और अहिंसापर नहीं रहेगी तबतक हम उन्नति नहीं कर सकते। इन बातोंको छोड़कर अगर हम यूरोपकी सभ्यताका अनुकरण करेंगे तो हमारा नाश हो जायेगा। मैं सूर्यनारायणसे प्रार्थना करता हूँ कि भारत अपनी सभ्यता न छोड़े। आप निर्भय हो जाइए। जबतक आपको तरह-तरहके भय लगे रहेंगे, तबतक आप कभी उन्नति नहीं कर सकते; कभी आप विजय नहीं पा सकते। कृपा कर प्राचीन सभ्यताको मत भूल जाइए। सत्य और प्रेमको हरगिज न छोड़िए। शत्रु और मित्रके साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार कीजिए। अगर हिन्दीको राष्ट्र-भाषा बनाना है तो सत्य और अहिंसाके तत्त्वोंसे आप उसे शीघ्र वैसा बना सकते हैं।

महात्मा गांधी