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पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

उनको त्याग करना ही पड़ेगा, यदि हिन्दी सीखनेको त्याग ही माना जाये। वैसे मेरा तो खयाल है कि अपने करोड़ों देशवासियोंके साथ हिलने-मिलने योग्य बना देनेवाली एक भाषा सीखना तो अपना एक अहोभाग्य माना जाना चाहिए। यह प्रस्ताव अस्थायी तौरपर एक प्रबन्ध करनेके लिए ही है। वैसे तो देशमें एक बड़ा प्रबल आन्दोलन खड़ा होना चाहिए जो हिन्दीको द्वितीय भाषाके रूपमें पब्लिक स्कूलोंमें लागू करानेपर शिक्षा-अधिकारियोंको विवश कर दे। परन्तु सम्मेलनने महसूस किया कि मद्रास प्रान्तमें हिन्दीका प्रचार तुरन्त ही आरम्भ किया जाना चाहिए। इसीलिए उपर्युक्त प्रस्ताव रखा गया है। मुझे आशा है कि आप इसे अपने पाठकों तक पहुँचा देंगे। साथमें मैं यह भी बतला दूँ कि समिति हिन्दी सीखनेके इच्छुक लोगोंको निःशुल्क हिन्दी पढ़ाने के लिए तमिल और आन्ध्र जिलोंमें हिन्दी-अध्यापक भेजनेकी बात सोच रही है। आशा है उन कक्षाओंका लाभ अनेक लोग उठायेंगे। उल्लिखित प्रशिक्षण के लिए आवेदनपत्र देनेके इच्छुक तरुणोंको अप्रैल मासकी अन्तिम तिथिसे पहले अपने प्रार्थनापत्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबादकी मारफत मेरे नाम भेजने चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
स्पीचेज ऐंड राइटिंग्ज ऑफ महात्मा गांधी
 

१९९. पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

नडियाद
अप्रैल १, १९१८[१]

खेड़ाकी परिस्थितिके बारे में मेरा वक्तव्य[२] शायद आपने पढ़ा होगा। यह संघर्ष लोगोंके जोशको कुचल डालनेके अधिकारियोंके प्रयत्नके विरुद्ध है। ऐसी परिस्थितिमें मैं मानता हूँ कि किसानोंकी मदद करना हमारा स्पष्ट कर्तव्य है। युद्ध चल रहा है, इस कारण ऐसे जुल्मोंपर पर्दा नहीं डाला जा सकता। मुझे मालूम हुआ है कि लोगोंके प्रति सहानुभूति दिखानेके लिए बम्बईमें एक सार्वजनिक सभा होनेवाली है। हो सके तो आप इस सभामें जाइये और बोलिये भी।[३]

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी से।
सौजन्य: नारायण देसाई
  1. श्री शास्त्रीके उत्तरमें इस तिथिका उल्लेख है।
  2. देखिए “वक्तव्य: खेड़ाकी परिस्थितिके बारेमें समाचारपत्रोंको”, २८-३-१९१८।
  3. श्री शास्त्रीने इसका उत्तर इस प्रकार दिया: “नडियादसे आपका दिनांक अप्रैल १ का पत्र मुझे मिल गया है। कहनेकी जरूरत नहीं कि इस प्रकार आपने मुझे जो सम्मान दिया है मैं उसका महत्व समझता हूँ। जो लोग अनुभव और स्थानीय परिस्थितिकी जानकारीके कारण इस विषय में अपना मत देनेके लिए मुझसे अधिक योग्य हैं मैं नहीं चाहता कि उनके बारेमें अपना कोई मत दूँ। तथापि आप