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२००. भाषण: कठानामें

अप्रैल १, १९१८

सरकार कहती है कि उसे लगान वसूल करना ही है, मैं कहता हूँ कि “हमारी जमीनोंमें से ले लो, हमारी मिल्कियतको जब्त कर लो या हमें हिरासतमें ले लो; किन्तु हम अपने हाथसे लगानका रुपया न देंगे और झूठे न बनेंगे।” इस लड़ाई में न्यायकी जीत होनी ही चाहिए। जबतक मैं जीवित हूँ, तबतक मैं आपके लिए लडूँगा। अभी तो जमीनें जब्त होनेकी कोई बात नहीं है। आभूषण, भैंसें और जंगम सम्पत्तिकी बात है। इसमें कोई बड़ी हानि नहीं है। सरकार जब्त करके दस रुपयेकी जगह हजार रुपयेकी जमीनें ले लेगी तो उसे ईश्वर भी सहन न करेगा।

बहनोंको सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा:

आपने अपने पतियोंसे विवाह किया है, उनके आभूषणों या पशुओंसे नहीं। अपने पतियोंको उनकी प्रतिज्ञाके पालनमें सहायता देना आपका धर्म है।

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह
 


यह पसन्द नहीं करेंगे कि मैं अपने मतके अतिरिक्त अन्य किसीके मतके अनुसार काम करूँ, विशेषकर महत्त्वपूर्ण मामलोंमें। साफ बात तो यह है कि यह मान लेनेपर भी कि इक रैयतके पक्षमें है, खेड़ाकी परिस्थितिमें सत्याग्रह छेड़नेके औचित्यके बारेमें मैं सन्तुष्ट नहीं हूँ। अलबत्ता मैं सरकारके अत्याचारको भी ठीक नहीं मानता। मैं कल सर इब्राहीम रहमतुल्ला और सर जेम्स डुबॉलसे मिला था। मैंने तो यथाशक्ति उन दोनोंसे यही आग्रह किया था कि तत्काल मैत्रीपूर्ण नीति अपनाई जानी चाहिए। मुझे तो यह सोचकर दुःख होता है कि मैं आपके आह्वानपर तुरन्त ही निस्संकोच होकर आपके साथ खड़ा नहीं हो पा रहा हूँ, पर साथ ही मैं जानता हूँ कि आप मुझसे इस परिस्थितिमें कोई ऐसा काम करनेकी अपेक्षा नहीं करेंगे जिसका समर्थन मेरा हृदय नहीं करता।” गांधीजी द्वारा इसके उत्तरके लिए देखिए “पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको”, ५-४-१९१८