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२०१. पत्र: कठानाके निवासियोंको

[अप्रैल १, १९१८के बाद]

[प्यारे भाइयो,]

आपके मालके नीलाम होनेकी खबर मिली। ऐसा नुकसान आपको असहनीय जान पड़ेगा, इसे मैं अच्छी तरह समझता हूँ। लेकिन मुझे लगता है कि हम इसी तरह आगे बढ़ सकेंगे। मेरी इच्छा है, आप लोग नुकसानसे होनेवाले दुःखको धैर्यके साथ आनन्द-पूर्वक सहन करें। यदि सरकारने चौथाई[१] लागू कर दी है तो उसके लिए हम लड़ेंगे और मुझे उम्मीद है कि हम उसे वापस ले सकेंगे। माल नीलाम होने देनेमें आप सबने जो बहादुरी दिखाई है उसके लिए मैं आपको बधाई देता हूँ। आपने जो त्याग किया है वह अवश्य फल लायेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। मैं आशा करता हूँ कि सब भाई अपने वचनका पालन करेंगे। सत्यकी इस लड़ाई में विजयी होकर पार उतरनेके लिए भगवान् आपको दैवी शक्ति और धीरज दें।

[आपका,]

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह
 

२०२. भाषण: लिम्बासीमें

अप्रैल २, १९१८

हम इस संघर्षको ‘सत्याग्रहकी लड़ाई’ का नाम देते हैं। हमने सत्यको अपना हथियार बनाया है, इसलिए यदि आप असत्य बोलेंगे और मुझे धोखा देंगे तो आप गिरेंगे और देश-भरमें यह कहा जायेगा कि हमारी लड़ाई कायरोंकी लड़ाई थी। अब जिन्होंने सरकारी लगान पूरा न दिया हो वे अपने हाथ ऊँचे करें।[२] अब जिन्होंने पूरा लगान दे दिया हो वे अपने हाथ ऊँचे करें।[३] इससे सिद्ध होता है कि अधिकांश किसानोंने लगान नहीं दिया है। सचमुच यह प्रसन्नताकी बात है। यदि इतने लोग अपनी बातपर जमे रहें तो हमारी जीत होगी। हमें जीतका अर्थ समझना चाहिए। हम किसलिए लड़ाई लड़ रहे हैं? हम यह लड़ाई इसलिए लड़ रहे हैं कि सरकार लगान मुलतवी कर दे। नियम ऐसा है कि चार आनेसे कम फसल हो तो सारा लगान और चार आने

 
  1. लगान न भरनेवालोंपर किया जानेवाला जुर्माना जो कि लगानका एक चौथाई होता था।
  2. इसपर कोई २०० लोगोंने हाथ उठाये।
  3. इसपर केवल तीन लोगोंके हाथ उठे।