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भाषण : सच्ची गोरक्षापर

भाव नहीं रखूँगा। उसी तरह उनपर क्रोध नहीं करूँगा और न उनके साथ मार-पीट करूँगा। ऐसा अभयदान देनेके बाद ही हम उनके साथ बात करने के अधिकारी हो सकते हैं। यह याद रखना है कि हम जिन बातोंको पाप समझते हैं, उन्हें हमारे मुसलमान भाई पाप नहीं समझते। इतना ही नहीं, किसी-किसी अवसरपर तो गायकी हत्या करना वे पुण्य समझते हैं। अपने धर्मका पालन प्रत्येक मनुष्यके लिए जरूरी है। यदि इस्लामका कोई ऐसा आदेश होता कि गायकी कुरबानी हर हालतमें जरूरी है, तो भारतमें वास्तविक शान्ति कभी न रह पाती। लेकिन मैं तो ऐसा समझता हूँ कि बकरीद आदि त्यौहारोंमें गायका वध करना कोई धार्मिक कर्त्तव्य नहीं है। परन्तु जब हम जोर-जुल्म करके गोवध रोकना चाहते हैं, तब मुसलमान भाई मान लेते हैं कि गोवध करना उनका धार्मिक कर्त्तव्य है। जो भी हो, मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि इस समस्याका समाधान केवल तपश्चर्यासे ही हो सकता है। ऐसे अवसरपर गायके लिए प्राण देना हमारी अन्तिम तपश्चर्या होगी।

ऐसी घोर तपश्चर्या करनेका भी सब हिन्दुओंको अधिकार नहीं है। दूसरोंको पापकर्मसे विमुख करनेवालोंको स्वयं पापकर्मसे मुक्त होना चाहिए। हिन्दू-जगत् गाय और गो-वंशपर बहुत बड़ा अत्याचार कर रहा है। उसका प्रत्यक्ष प्रमाण हमारी गायोंकी वर्त्तमान दशा है। जिनका रक्त-मांस सूख गया है, जिनकी चमड़ीके भीतर हड्डीका ढाँचा साफ नजर आता है, जिन्हें पूरी खुराक नहीं मिलती, जिनपर मनमाना बोझ लाद दिया जाता है और जिन्हें पूँछ मरोड़कर या पैने मारकर हाँका जाता है, ऐसे हजारों बैलोंको जब मैं देखता हूँ तब मेरा हृदय रोता है, मेरा शरीर काँपने लगता है और मैं सोचता हूँ कि जबतक हम ऐसी घोर हिंसा करनेसे बाज नहीं आते तबतक हम मुसलमान भाइयोंसे क्या कह सकते हैं? हमारी स्वार्थ-बुद्धि इतनी प्रबल है कि गायका सारा दूध दुहते हुए हमें तनिक भी शरम नहीं आती। कलकत्तेकी डेरियोंमें तो बछड़ोंको माँके दूधके बिना ही रखा जाता है। वहाँ फूंकेकी क्रियासे गायोंका सारा दूध निकाल लिया जाता है। इन डेरियोंके मालिक और व्यवस्थापक सब हिन्दू ही होते हैं और दूध पीने-वालोंमें भी बड़ी संख्या हिन्दुओंकी ही है। जबतक ऐसी डेरियाँ चलती हैं और वहाँका दूध हम पीते हैं, तबतक हमें मुसलमान भाइयोंसे एक शब्द भी कहनेका क्या अधिकार है? यह भी विचारने लायक बात है कि सारे भारतके बड़े शहर कसाईखाने बन गये हैं। वहाँ हजारों गायों और बैलोंका वध होता है। और अधिकांश अंग्रेज भाइयोंको मांस वहींसे दिया जाता है। इस विषयमें सारा हिन्दू-जगत् चुप है और उस हत्याको बन्द करानेमें वह अपने-आपको असमर्थ मानता है।

जबतक हम ऐसे घोर हत्याकांडको नहीं रोक पाते, तबतक मुसलमानोंके दिलोंपर असर डालना या उनसे गायोंकी रक्षा कराना मुझे असम्भव-सा मालूम होता है। इसलिए हमारा दूसरा काम अंग्रेज भाइयोंके बीच आन्दोलन करना है। उसमें हम पशुबलका उपयोग नहीं कर सकते। अंग्रेज भाइयोंको भी हमें अपनी तपश्चर्या और नम्रतासे जीतना चाहिए। गोमांसका भक्षण उनके लिए कोई धार्मिक क्रिया नहीं है। उन्हें समझा पाना इस हदतक ज्यादा आसान होना चाहिए। जब हम उपर्युक्त हिंसाके दोषसे मुक्त हो जायेंगे और अंग्रेज भाइयोंको गोमांस-भक्षण तथा गाय-बैलोंकी हत्या न करनेकी बात समझा