पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/३२०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भाई मुहम्मद अली और शौकत अली ऐसे ही मुसलमान हैं। इन दोनों भाइयोंका परिचय प्राप्त करनेके सिलसिलेमें मेरी भेंट श्री शुएबसे हो गई। वे यहाँ मेरे अनुरोधपर आये हैं। वे विद्वान् और सत्यके समर्थक हैं। उन्होंने कष्ट-सहनमें कोई कसर नहीं रखी है।

दूसरे भाइयोंका परिचय किन शब्दोंमें दूँ? मेरे भाई गुजर गये हैं; किन्तु जिनको देखकर मुझे अपने भाइयोंका अभाव विस्मृत हो जाता है वे भाई राजेन्द्रबाबू यहाँ आये हुए हैं। इनसे मुझे इतना प्रेम मिला है कि मैं उन्हें कदापि भूल नहीं सकता। भाई बदरीनाथ वर्मा भी राजा जनककी भूमि बिहारके वासी हैं। बहन आनन्दीबाई मेरी बेटीका अभाव पूरा कर रही हैं। वे विधवा हैं। वे अब भी पढ़ रही हैं। चम्पारनमें जब स्त्रियोंकी आवश्यकता हुई थी तब डॉ० देवने इन्हें मुझे सौंपा था। आज हम इन सब लोगोंकी उपस्थितिमें यहाँ सत्याग्रह-संग्रामकी बात करेंगे।

बम्बई तो धनाढ्योंकी नगरी है। उसे सत्याग्रहका मर्म समझाना कठिन काम है और इससे भी कठिन काम है बम्बई सरकारको समझाना, क्योंकि वह तो जहाँ-तहाँ कानूनी धाराएँ लागू करती रहती है। फिर भी अभी हालकी बातचीतके फलस्वरूप एक समिति नियुक्त की गई है। वह सरकारसे मिलेगी। बम्बईमें सार्वजनिक सभा बुलानेकी बात फिलहाल मुलतवी कर दी गई है। आप लोगोंको छोड़कर बम्बई जानेकी इच्छा नहीं होती। मैं आपको छोड़कर कहीं जा ही नहीं सकता। यह लड़ाई बम्बईके लोगोंकी सहायतासे नहीं जीतनी है। यदि खेड़ाके किसान सरकारके डरसे एकके बाद एक गिरते जायें तो बम्बईके लोगोंकी सहायता क्या काम देगी? आप सरकारको छाती ठोककर कहें कि आपकी यह लड़ाई सत्यकी लड़ाई है और इसमें आप कष्ट सहनेके लिए तैयार हैं।

यह अच्छा ही हुआ कि मैं अपने साथ अपने इन मेहमानोंको यहाँ ले आया। यह वल्लभभाईको जन्मभूमि है। वल्लभभाई यद्यपि अभी भट्टीमें हैं, और उन्हें अभी भली-भाँति तपना है फिर भी मुझे विश्वास है कि हमें अन्तमें कुन्दन ही मिलेगा। आप इन्हें प्रसन्नतापूर्वक आशीर्वाद देकर विदा करें। आपने उन्हें लड्डुओंकी दावत दी, यह उचित ही है, किन्तु उसके बाद दक्षिणा भी तो देनी चाहिए। और उनकी दक्षिणा यही हो सकती है कि आपको सरकार चाहे उस तालाबमें डुबा दे अथवा आगमें झोंक दे; किन्तु आप उसे लगानकी एक पाई भी न दें।

इस सभामें बड़ौदा राज्यके किसान भाई भी आये हैं, यह बहुत अच्छी बात है। सत्याग्रहमें हमारी जमीन चली जायेगी तब, मैं उनसे ऐसी अपेक्षा करता हूँ कि वे अपनी जमीनें हमें दे देंगे। यदि हम यह कहते हों कि फसल चार आनेसे कम हुई है तो सरकार एक पाई भी ले जाये, इसे हम कैसे सहन करेंगे? इस संघर्ष में एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व दूसरा भी है। और वह यह है कि सरकारकी बात रहे या रैयतकी। अधिकारियोंकी झूठी जिदसे लड़नेमें लोगोंकी सरकारके प्रति वफादारी है। हमें मनुष्यता प्राप्त करनी है। जब हम जाग्रत हुए हैं तब हमें सावधान होकर चलना चाहिए। देशमें उथल-पुथल हो रही है। विदेशोंमें रक्तकी नदियाँ बह रही हैं। यूरोपमें अंग्रेजोंने अपनी वीरता प्रमाणित कर दी है। हम इन वीरोंके सहभागी होना चाहते हैं। हम वीरोंके साथ वीर बनेंगे तो ही शोभा पायेंगे। यदि हम वीर न बनेंगे तो उन्हें भी नामर्द बना देंगे।