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पत्र: के० नटराजनको

यदि हम दीन बन जायेंगे तो उनको भी दीन कर देंगे। हम देशमें जाग्रति उत्पन्न करने और लोगोंको सत्याग्रहका पाठ पढ़ाने के लिए यह लड़ाई लड़ रहे हैं।

लड़ाई में शस्त्र लेनेसे वीरता नहीं आती। शस्त्र हों; किन्तु हृदयमें कायरता हो तो शस्त्र व्यर्थ हैं। वीरता निभर्यतासे तलवारका प्रहार सहकर भी अविचलित बने रहनेमें है। इस वीरताके तत्त्व पुरुषों, स्त्रियों और बालकों सभीमें हो सकते हैं। मैं चाहता हूँ कि खेड़ाके किसानोंमें ऐसा शौर्य हो। हमारा शस्त्र सत्यपर आग्रह करना है। खेड़ाके किसान अपना सर्वस्व गँवा दें; किन्तु लगान न दें। मुझे विश्वास है कि करमसदके किसान कभी पीछे न हटेंगे। हमें दुःख सहन करना है। हमें अपनी सम्पत्तिकी आहुति देनी है। यह विचार अवश्य आता है कि खानेके लिए मिलेगा या नहीं; किन्तु जिसने दाँत दिये हैं वह खानेके लिए भी देगा।[१]

यह संघर्ष सर्वस्वकी बलि देनेका है। फिर भी जो बुरी नीयतसे हमारी जमीनोंपर हाथ डालेंगे वे उसे पचा न सकेंगे। यदि सरकार ऐसा करेगी तो हम विद्रोही बन जायेंगे। यदि वह सौ रुपयेका लगान वसूल करनेके लिए दस हजार रुपयेकी जमीनको नीलाम करेगी तो उस जमीनको जो भी लेगा पचा न सकेगा। इस सरकारका आधार लूट-पाट नहीं, न्याय है। आप विश्वास रखें कि जिस दिन मुझे यह पता चल जायेगा कि इस राज्यका आधार लूट-पाट है, उसी दिन उसके प्रति मेरी वफादारी चली जायेगी। हमारी जमीनें चली जायेंगी तब हम क्या करेंगे, यह भय क्यों करना चाहिए? ऐसा कोई नहीं है जो हमारी जमीनोंको पचा सके।

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह
 

२०४. पत्रः के० नटराजनको

[अप्रैल ५, १९१८ से पूर्व]

भाईश्री नटराजन,[२]

यह देखकर मुझे दुःख होता है कि कई बार आप जल्दीमें निर्णय कर लेते हैं और दूसरे पक्षकी बात सुननेका धीरज नहीं दिखाते। आप राष्ट्रकी सेवा तो करना ही चाहते हैं, किन्तु मेरा नम्र विचार है कि आपकी इस आदतके कारण राष्ट्र-सेवा करनेकी आपकी शक्तिपर उलटा असर पड़ता है। इस खेड़ा-प्रकरणको ही लीजिए। आप मुझसे भिन्न मत रखें, इसका मैं बुरा नहीं मानता; बल्कि मैं तो इस बातके लिए आपका आदर करता हूँ कि आप अपने विश्वासोंको व्यक्त कर देते हैं, यद्यपि अपने मित्रोंके मनके विरुद्ध उनपर डटे रहनेमें आपको कष्ट भी हो सकता है। मेरी शिकायत इस बातके खिलाफ है कि आप जल्दबाजीमें फैसला कर लेते हैं। आप खेड़ाकी लड़ाईकी भीतरी बातें नहीं

  1. इसके बाद गांधीजीसे कुछ प्रश्न पूछे गये जिनमें से एकका उत्तर अगले अनुच्छेदमें दिया गया है।
  2. कामाक्षी नटराजन; इंडियन सोशल रिफॉर्मरके सम्पादक।