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२०५. पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको

अप्रैल ५, १९१८

[प्रिय श्री शास्त्रियर,]

आपके पत्रके[१] लिए आभारी हूँ। अपने हरएक कामके लिए आपकी सम्मति प्राप्त करनेकी मुझे कितनी ही उत्सुकता हो, फिर भी आपकी यह दलील में स्वीकार करता हूँ कि आपकी अन्तरात्मापर किसी भी तरहका दबाव नहीं पड़ना चाहिए। मैं जानता हूँ कि खेड़ाका सवाल दिनोंदिन जैसे आगे बढ़ता जायेगा, आप उसके साथ सम्पर्क बनाये ही रहेंगे।

[हृदयसे आपका,]

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखत डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

 

२०६. भाषण: वड़थलमें

अप्रैल ५, १९१८

इस संघर्षमें वड़थल गाँवके लोगोंने आरम्भसे ही मुख्य हिस्सा लिया है। मैं यहाँ एक-एक खेतपर गया हूँ और मुझे विश्वास हो गया है कि इस गाँवमें फसल औसतन चार आनेसे कम हुई है। यहाँ कलक्टर फिर जाँच करने आया था। मैंने उसे लिखा कि मैंने स्वयं जाँचकी है और इस बातका इतमीनान कर लिया है कि फसल चार आनेसे कम हुई है; किन्तु उन्होंने मेरी बात स्वीकार नहीं की।

मैंने आप लोगोंको बताया ही है कि हमारी यह लड़ाई स्वयं कष्ट-सहनकी लड़ाई है। आपको जितना कष्ट सहना पड़ रहा है, सत्याग्रहकी लड़ाईमें उसकी अपेक्षा मैंने और लोगोंको ज्यादा कष्ट सहते देखा है। मुझे तो आपको कड़वे घूँट पिलाने हैं। बड़थलमें जिस दिन सरकार आपकी भैंसें नीलाम करे, आपकी चीजें नीलाम करे और आपकी सम्पत्ति जब्त करे उस दिनको आप खुशीका दिन समझें। यदि किसी बड़थलवासीको कैदकी सजा हुई तो कैदखाना पवित्र हो जायेगा। स्त्रियोंको तो उनके पति जिस दिन जेल जायें उस दिन अवश्य ही दावत करनी चाहिए।

जब्तीके नोटिस आये हैं। ये धमकियोंके रूपमें हैं। उनके बावजूद जमीनोंके मालिक तो हम ही हैं। जमीन चाहे जितनी कीमती हो; किन्तु इस कारण हम अपने कर्त्तव्यके

  1. देखिए “पत्र: वी० एस० श्रीनिवास शास्त्रीको”, १-४-१९१८ की पादटिप्पणी-३।