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भाषण: वड़थलमें

पालनसे तनिक भी झिझकें नहीं। यदि इस लड़ाईमें आपका सर्वस्व चला जायेगा तो इससे आपको किसीको भी भूखों नहीं मरना पड़ेगा। हम भीख माँगेंगे, किन्तु आपकी जरूरत पूरी करेंगे। आप अपनी प्रतिज्ञाकी खातिर दुःख सहें।

यदि मैं भैंसोंका पैसा दूँ तो इससे यही निष्कर्ष निकाला जायेगा कि मैंने और आप सभीने लोगोंको धोखा दिया है। आपको पैसेकी मदद मिले और तब आप सत्याग्रह की लड़ाई लड़ें, यह अनुचित होगा। सरकार जोर-जुल्म करे तो आपके साथ खड़ा हुआ जा सकता है, आपको हिम्मत बँधाई जा सकती है और नैतिक सहायता दी जा सकती है। मुझे आपके भीतर पैठी हुई पस्तहिम्मती निकाल देनी है। मैं भारतके प्राचीन गौरवको वापस ले आना चाहता हूँ।

यदि प्राचीन कालमें सीता हुई थी तो इस कालमें भी होनी चाहिए, ऐसा मेरा विश्वास है। भारतमें एक युगमें रामचन्द्र-जैसे युग-पुरुष हुए हैं; ऐसे पुरुष इस युगमें भी होने चाहिए। हमारे पूर्वजोंकी यह विरासत हममें भी आनी चाहिए। आपने हरिश्चन्द्र और ध्रुवकी कथाएँ सुनी ही। जैसा हरिश्चन्द्रने किया हम बिलकुल वैसा नहीं कर सकते; किन्तु उसका एक अंश तो कर ही सकते हैं। बहिनें भी इस प्रतिज्ञाकी महिमाको समझें। यदि बहिनें अपने टेककी पक्की न हों तो उनके बच्चे भी साहसहीन होंगे। जिस ईश्वरने हमें उत्पन्न किया है वही हमें न्याय देगा। यदि हम इस लड़ाईमें टिके रहेंगे तो भविष्य में स्वराज्य भी ले सकेंगे। बड़थलके किसानोंकी रक्षा करनेके लिए मुझे एक बार मरना भी पड़े तो में प्रसन्नतापूर्वक मरनेके लिए तैयार हूँ।

अब लगानकी वसूलीमें आपकी भैंसें बेची जा रही हैं, इससे मैं अपरिचित नहीं हूँ। भैंसें बेचकर लगान भरनेकी अन्य अनेक घटनायें भी हुई हैं। ऐसा संकट आपके ऊपर हर साल न आये, इसलिए आप इस बार सरकारको अपनी भैंसें बेच लेने दें। सरकार इस बार भले ही ऐसा कर ले; किन्तु आप विश्वास रखिये अगले सालसे वह भैंसे कदापि न बेच सकेगी और दूसरे जुल्म भी न कर सकेगी।

आत्म-सम्मानकी भावना तो पशुओं और पक्षियों तक में होती है, फिर आप तो मनुष्य कहे जाते हैं। इसलिए आप अपनी प्रतिज्ञाका पालन करनेमें न चूकें। प्रतिज्ञा लेनेसे पूर्व आपको सब स्थिति भली-भाँति समझा दी गई थी। यद्यपि हमारी इस लड़ाई में हमें धनिकोंकी सहायता प्राप्त है; किन्तु उनकी सहायता लेकर लड़ना ऐसा ही है जैसे सूजनसे किसीका मोटा-ताजा दिखाई देना। आप ईश्वरमें श्रद्धा रखें; न्याय और सत्यके पथपर चलते हुए आपकी रक्षा वही करेगा। न्याय अथवा दया उसके सिवा किसी दूसरेसे नहीं मिल सकती।

अब जो लोग आपके साथ काम कर रहे हैं, आप उनकी स्थितिपर विचार करें। चौबीस घंटोंमें एक क्षणके लिए भी मैं खेड़ा-सत्याग्रहकी बात नहीं भुला सकता। डॉ० हरिप्रसाद देसाईने तो खेड़ाको अपना घर ही बना लिया है। अहमदाबादमें उनके पास सार्वजनिक कामकी कमी नहीं है। उस सबको छोड़कर वे यहाँ आकर इस काममें लग गये हैं और आपके साथ रह रहे हैं। आप देखते ही हैं कि श्री वल्लभभाई और श्री केशवप्रसाद अभी महुधासे चले आ रहे हैं।