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सन्देश : हिन्दी कक्षाको

दुःखमें डाल रखा है। मैंने जो-कुछ सुना है, वह अगर सच हो, तो मुझे बड़ा दुःख है। जो सही मालूम हो, उसे कहनेका आपको पूरा हक है और एक मित्रके प्रति आपका यह फर्ज भी है और मैं अपने-आपको आपका मित्र मानता हूँ। सार्वजनिक जीवनमें तो ऐसे सैकड़ों मौके आ सकते हैं, जब मित्रोंमें मतभेद अनिवार्य हो जाता है, फिर भी वे मित्र ही बने रहते हैं। इसलिए कृपया मुझे बताइये कि वहाँ समितिके सामने आप क्या कहते हैं; और यह भी कि मेरे सारे कार्यके बारेमें आपकी क्या राय है? मैं जानता हूँ कि यदि आपकी राय प्रतिकूल हो [और] मैं उससे सहमत न होऊँ, तो भी आप कोई ख़याल नहीं करेंगे। इतना विश्वास रखिए ही कि आपकी रायको मैं उचित महत्त्व दूँगा।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

 

२१७. सन्देश: हिन्दी कक्षाको[१]

[नडियाद]
अप्रैल १०, १९१८

मैं कामना करता हूँ आपके प्रयासको पूर्ण सफलता प्राप्त हो। मुझे पूर्ण विश्वास है कि अन्य कई क्षेत्रोंकी तरह, हिन्दीको एक सामान्य माध्यम बनाने और इस प्रकार अंग्रेजीके प्रयोगमें लगनेवाली मानसिक शक्तिकी हानिसे देशको बचाने के क्षेत्रमें भी दक्षिण ही हमारी रहनुमाई करेगा।

[अंग्रेजीसे]

बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९१८ तथा महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

 
  1. यह सन्देश डॉ० नायकके एक तारके उत्तरमें भेजा गया था। तार इस प्रकार था: “आपके आशीर्वादसे हिन्दी कक्षा ११ तारीखको माननीय कामतकी अध्यक्षता में एक सार्वजनिक सभामें शुरू हो रही है। ‘हिन्दी शिक्षण प्रसारक मण्डल’ का उद्घाटन दूसरे दिन न्यू पूना कॉलेज, पूनाकी इमारत में माननीय बी० एस० कामतकी अध्यक्षतामें आयोजित एक समारोहमें किया गया था।