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२१८. पत्र: जे० एल० मैफीको[१]

नड़ियाद
अप्रैल १०, १९१८

[प्रिय श्री मैफी,]

आपने अली भाइयोंके सम्बन्धमें उत्तर देनेका वचन दिया था। मैं रोज-रोज उसकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ।

आपको शायद मालूम होगा कि खेड़ाकी फसलोंके सिलसिलेमें स्थानीय अधिकारियोंके साथ स्थानीय तौरपर मेरा झगड़ा चल रहा है। मुझे आशा है कि जनताकी आवाजको उचित महत्त्व दिया जायेगा और उसकी रायकी कद्र की जायेगी।

लेकिन मुझे परेशानी तो असलमें अली भाइयोंके मामलेको लेकर हो रही है। लगता है कि मैं जब भी साम्राज्यके एक सम्माननीय नागरिककी हैसियतसे युद्धमें हाथ बँटानेकी कोशिश करता हूँ, तभी देशके प्रशासकोंको चिन्ता होने लगती है। ज्यादा अच्छा होता कि मैं मेसोपोटैमिया या फ्रांसमें होता। मैं अपनी सेवाएँ देनेके लिए दो बार लिख चुका हूँ। पर उनको स्वीकार नहीं किया गया। मुझे इससे बड़ी शर्म लगती है कि मैं भारत आने के बादके कालमें युद्धके कामका, आमतौर पर जिसे युद्धका काम कहा जाता है, अपना कोई अनुभव पेश नहीं कर सकता।

बल्कि ऐसा लगता है मानो इसके ठीक विपरीत मैंने सरकारके लिए असुविधाजनक परिस्थितियाँ पैदा की हैं और फलस्वरूप हो सकता है, मुझे किसी ऐसे आन्दोलनमें भाग लेना पड़े जो फैलनेपर सरकारकी गम्भीर चिन्ताका कारण बन जाये। मैं लॉर्ड चैम्सफोर्डका बहुत अधिक आदर करता हूँ और उनकी चिन्ता और बढ़ानेकी बात नहीं सोच सकता, फिर भी मैं अली भाइयोंके सिलसिले में अपने स्पष्ट कर्त्तव्यसे भी मुँह नहीं मोड़ सकता। उनकी नजरबन्दीसे मुसलमानोंमें कटुता पैदा हो गई है। मैं एक हिन्दूके नाते महसूस करता हूँ कि मैं अपने-आपको उनसे अलग नहीं रख सकता। यदि मैं सरकार द्वारा उनके विरुद्ध की गई कार्रवाईको जनताके सामने औचित्यपूर्ण नहीं ठहरा सकता, तो मुझे उनकी रिहाई कराने में मदद करनी ही चाहिए। इसलिए यदि सरकारके पास उन भाइयोंके खिलाफ वास्तव में कोई सबूत है तो उसे पेश करके वातावरण शान्त किया जाना चाहिए। परन्तु यदि सरकारके पास पेश करने लायक कोई सबूत नहीं है तो में आग्रह करता हूँ कि अली भाइयोंको रिहा कर दिया जाये।

यदि लॉर्ड चैम्सफोर्डकी राय इसके विपरीत हो, तो सरकारको एक आन्दोलनका सामना करना और फलस्वरूप उसके नेताओंको जेलमें बन्द करना पड़ेगा। परन्तु मैं अपनी पूरी शक्ति के साथ अनुरोध करता हूँ कि उनको रिहा किया जाये। लोकमतका सम्मान

  1. यह वास्तव में १४ अप्रैलको एक अलग टिप्पणीके साथ भेजा गया था। देखिए “पत्र: जे० एल० मैफीको”, १४-४-१९१८।