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पत्र : एच० एस० एल० पोलकको

करनेसे सरकारकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी ही और जहाँतक राज्यके लिए खतरा उत्पन्न होनेकी बात है, यदि उनकी रिहाईका मतलब कोई विश्वासघात सिद्ध हुआ तो राज्यकी रक्षाके लिए मैं अपना जीवनतक होम करनेके लिए तैयार रहूँगा।

[हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी]

[अंग्रेजीसे]

नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया: होम: पॉलिटिकल ― ए: जून १९१८, संख्या ३५९।

२१९. पत्र : हनुमन्तरावको

[नडियाद]
अप्रैल १०, १९१८

प्रिय भाई हनुमन्त राव,

हिन्दीके मामलेमें अगर श्री शास्त्रियर मेरे विचारसे सहमत हों, तो मैं चाहूँगा कि मेरी अपीलके[१] जवाब में तुम अपना नाम हिन्दीके विद्यार्थीके रूपमें दे दो और मेरी तरफसे दो और तेलगु भाइयोंको भी तुम्हीं चुन लो। मुझे तीन तमिल भाई तो मिल गये हैं।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

महादेव देसाई की हस्तलिखित डायरी से।

सौजन्य: नारायण देसाई

 

२२०. पत्र: एच० एस० एल० पोलकको

[नडियाद]
अप्रैल १०, १९१८

प्रिय हेनरी,

मैं तुम्हें नियमित रूपसे नहीं लिख सका। मेरे पास लिखनेका समय भी नहीं

और शक्ति भी नहीं। मैं इस समय इतने नये-नये रचनात्मक काम हाथमें ले रहा हूँ कि दिन पूरा होनेपर थककर चूर हो जाता हूँ और दूसरा कुछ भी काम करनेकी शक्ति नहीं रह जाती। लिखना, भाषण देना और बातें करना भी मेरे लिए कष्टदायक है। मैं केवल चिन्तन करना चाहता हूँ। सत्याग्रह संघर्षका क्रम, शुरूसे अन्ततक एक

  1. देखिए, “पत्र: अखबारोंको”, ३१-३-१९१८।
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