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भाषण: अकलाचाम

उसे छोड़ दें तो कायरोंकी उपाधि मिलेगी। जिस देशके लोग कायर हो जाते हैं वह देश निष्प्राण हो जाता है। खेड़ामें जो लड़ाई चल रही है वह लगान मुलतवी कराने के लिए आरम्भ की गई है; किन्तु उसका मर्म बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। सरकार जो-कुछ कहे वह सत्य है और लोग जो-कुछ कहें वह असत्य है, यह सिद्धान्त कैसे सहन किया जा सकता है। सरकार कहती है कि सत्ताका सम्मान किया ही जाना चाहिए। सत्ता अंधी है, अन्यायी है। जो सरकार उस सत्ताका सम्मान करनेकी बात कहती है वह टिक नहीं सकती। हमें बचपनसे ही बताया गया है कि अंग्रेजोंका राज्य न्यायका राज्य है। न्याय उसका आदर्श है। मुझे लगता है कि इस आदर्शके स्थानपर अब मनमानी चल रही है। इसलिए मैं कहता हूँ कि हमें इस सरकारके विरुद्ध विद्रोह करना चाहिए। मैं खेड़ा जिलेमें आया, और जब मैंने फसलके सम्बन्धमें जाँच की तब आप लोगोंने मेरे और मेरे साथियों के सम्मुख यह सिद्ध कर दिया कि खेड़ा जिलेमें फसल चार आनेसे कम हुई है। यदि यह बात सच है तो हमारी माँग पूरी करना सरकारका कर्त्तव्य है। और हमारी माँग भी क्या है? केवल यही कि एक सालके लिए लगान मुलतवी कर दिया जाये। और यह कि यदि सरकार लगान मुलतवी करनेकी घोषणा कर देगी तो हममें से जो लोग अधिक साधन सम्पन्न हैं, वे अपना लगान देने के लिए तैयार हैं।

हमारी ऐसी उचित माँगको भी सरकार स्वीकार न करे तो फिर लोगोंका कर्त्तव्य क्या है? शास्त्रोंमें कहा गया है कि राजा भूल करे तो लोग उसे बतायें। सत्ता अंधी होती है और उसे आसानी से अपनी भूल नहीं दिखाई देती। इस मामलेमें सरकार असत्य आचरण और लोगोंके प्रति अन्याय कर रही है, जब कि हम लोग सच्ची बात कह रहे हैं और न्याय माँग रहे हैं। सत्यकी सदा जीत ही होती है। आपको यह विश्वास हो जाना चाहिए कि यदि सत्यकी खातिर दृढ़तापूर्वक अपनी प्रतिज्ञाका पालन करते रहेंगे तो ऐसी कोई सरकार नहीं है जो प्रजाको नाहक बरबाद कर दे।[१] मैं सुनता हूँ लोग कहते हैं कि वे दुःखमें डूबे हुए हैं। किन्तु यदि हम ज्ञानपूर्वक कष्ट सहें तो हमारा उद्धार ही हो जाये, मैं यहाँ यही कहने के लिए आया हूँ। मैंने खेड़ा जिलेके लोगोंपर विश्वास किया है। कुछ लोगोंने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी है। उस हदतक हमारा दायित्व बढ़ गया है। यात्रामें दो-तीन गाड़ियाँ होती हैं। यदि उनमें से एकाध गाड़ी टूट जाये तो बाकी गाड़ियोंको अधिक भार ढोना पड़ता है। मेरी इच्छा है कि आप इस लड़ाईसे खेड़ाकी कीर्ति उज्ज्वल करें। इस इच्छाको पूरा करना आपके हाथों में है। कमिश्नर साहबने लोगोंको परसों नडियादमें बुलाया है। जिन्होंने सरकारी लगान दे दिया है यह बुलावा उनके लिए नहीं; किन्तु जिन्होंने लगान नहीं दिया है विशेष रूपसे उनके लिए है। वे उनसे बातें करना चाहते हैं। इसलिए जिन्होंने लगान न दिया हो उन्हें वहाँ अवश्य जाना चाहिए। और आपने जो प्रतिज्ञा ली है उसके सम्बन्धमें आपको जो-कुछ कहना हो वह निर्भय होकर कहें। कमिश्नर साहब कहेंगे कि गांधी आपको गुमराह कर रहा है और उसने आपको अच्छी

  1. १८-४-१९१८ को प्रकाशित बॉम्बे कॉनिकलकी रिपोर्ट में ये शब्द अधिक हैं: “इससे हम संसारकी दृष्टिमें ऊँचे उठ जायेंगे। हमारे मनमें उसके प्रति कोई दुर्भाव नहीं है, प्रत्युत बहुत अधिक सद्भाव है।”