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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सलाह नहीं दी है। कदाचित् वे यह भी कहेंगे कि वह आदमी तो अच्छा है; किन्तु इस मामलेमें उसने भूल की है। किन्तु मैंने आपसे ही आँकड़े इकट्ठे किये हैं, और उनसे सिद्ध होता है कि फसल चार आने आई है। यह अन्दाज ठीक था इसलिए आपको श्री प्रैटके सम्मुख उसके पक्षमें अपनी गवाही देनी चाहिए। किसीको भी उनसे डरना नहीं चाहिए। हमारा उद्धार सत्यपर आरूढ़ रहनेमें है। हम स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए लड़ रहे हैं।[१] मैं बहनोंसे कहता हूँ कि “आप भी अपने पतियोंसे कहें कि उनपर चाहे जितना कष्ट आये, परन्तु वे सरकारको लगान न दें।” यदि हम अपनी प्रतिज्ञापर कायम रहेंगे और अपनी टेकका पालन करेंगे तो स्वतन्त्रता हमारे पीछे-पीछे अवश्य चली आयेगी। इसलिए आप अपनी प्रतिज्ञाका पालन करने के लिए जितने उपाय कर सकें, अवश्य करें। जिन लोगोंने लगान दे दिया है उनको मेरी सलाह है कि वे लगान न देनेवाले लोगोंको अपनी बातपर टिके रहने में मदद दें।

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह
 

२२३. भाषण: सींहुजमें

अप्रैल १०, १९१८

आज मुझे आपसे जो बातें कहनी हैं उनको आरम्भ करनेसे पहले में पूछता हूँ कि आपमें से कितने भाइयोंने सरकारी लगान नहीं दिया है [२] यहाँ आकर मैने सुना कि इस लड़ाई में सरकारकी सख्तीसे बहनें डर गई हैं और इस कारण पिछले तीन-चार दिनमें बहुतसे लोगोंने अपना लगान दे दिया है। आपमें से जिन लोगोंने भयके कारण लगान अदा कर दिया है उनके लिए मुझे खेद है और जिन्होंने प्रतिज्ञा लेनेपर भी लगान अदा किया है उनके लिए तो और भी अधिक खेद है। प्रतिज्ञा न करना बुद्धिमानी है; किन्तु एकबार प्रतिज्ञा ले ली जाये तो उसका पालन अवश्य किया जाना चाहिए। कुछ लोग कहेंगे कि यह लड़ाई एक वर्षके लिए लगान मुलतवी कराने के उद्देश्यसे लड़ी जा रही है। हाँ, यह बात सच है; किन्तु वस्तुतः इसके पीछे एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मुद्दा है, और हम उसीके लिए लड़ रहे हैं। हमें बिलकुल निर्भय होना चाहिए। भय, हम पुरुष हों या स्त्री, हमें शोभा नहीं देता। भय तो पशु करते हैं। परसों मैंने यह उदाहरण दिया था कि जब सड़कपर कोई मोटर निकलती है तो [गाड़ीमें जुता] बैल उसे देखकर डर जाता है। उसकी भयभीत आँखोंको देखकर मुझे दया आती है। मोटर पास आते देखकर वह थर-थर काँप उठता है और कई बार तो गाड़ी उलट जानेका भय होता है। बैलका भय अकारण है। हमारी दशा भी बैल ही जैसी है। मनुष्यके लिए यह उपमा

  1. बॉम्बे क्रॉनिकलमें प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार गांधीजीने यहाँ यह भी कहा: “ स्वतन्त्रता, निर्भयता और सत्य ऐसे गुण हैं जो हमें अभी प्राप्त करने हैं। वे हमारी आत्मामें प्रसुप्त हैं। यदि हम उन्हें अपने भीतर जाग्रत नहीं कर सकते तो हम मनुष्य नहीं, पशु हैं। हमें मनुष्य बनना है।”
  2. सभामें मौजूद बहुतसे लोगोंने हाथ उठाये।