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भाषण: सींहुजमें

बहुत कठोर है; किन्तु है बिलकुल वास्तविक। हम अकारण भय क्यों करें? तलाटी या अन्य अधिकारी किसीको मारते नहीं हैं; मार भी नहीं सकते। चौकीदार भी पूछकर चले जाते हैं। उन्हें तो यह सोचकर डर लगता है कि अब जनताका जमाना आ गया है। एक ओर तो ये लोग डरते हैं और दूसरी ओर हम लोग डरते हैं। इसका कारण क्या है? यदि सरकार हमारे पशुओंको ले जाये, तो ले जाये। यदि वह हमारे जेवर ले तो उसे दे दें, किन्तु हमें एक चीज नहीं देनी है और वह है आत्म-सम्मान। जो व्यक्ति आत्म-सम्मानकी रक्षा नहीं कर सकता, कहना चाहिए कि उसकी आस्था धर्ममें नहीं है। जिसे ईश्वरका भय है उसे किसी अन्यका भय नहीं होता। जिस ईश्वरकी कल्पना हमने सर्वशक्तिमान् और सर्वज्ञके रूपमें की है वह समस्त संसारका रक्षण और कल्याण करता है। सत्य और धर्मकी इस लड़ाईमें जो इतने सारे लोग प्रतिज्ञा ले चुके हैं उन्हें धोखा देकर आप कैसे गिर जायेंगे? यह कैसे सम्भव है? जो भाई डर गये हैं उनमें साहस और देशप्रेम हो तो वे खड़े होकर कहें कि जो भाई अपनी प्रतिज्ञापर जमे हैं उन्हें हम आश्वासन देते हैं। उनके खेत या उनके पशु चले जायेंगे तो हम उन्हें हिस्सा देंगे। कुछ बहनोंने कहा है कि यदि मैं दो दिन पहले आया होता तो वे लोग लगानका पैसा न देते। मैं इन बहनोंसे यह कहूँगा, आप अपने पतियोंसे सत्यकी टेक रखनेके निमित्त यह कहें कि वे अपनी सम्पत्तिका उपयोग अपने समाजके हितार्थ करें। मैंने परसों वासद और बोरसदमें कहा था कि जो व्यक्ति स्वयं गिर गया है उसका मन कहता है कि दूसरोंको भी गिरायें और वह अपनी दुर्बलता स्वीकार करनेके बजाय इसको ढकनेमें लग जाता है। यदि किसीके मनमें ऐसी बात हो तो वह उसे निकाल दे और प्रतिज्ञा लेनेवाले सत्याग्रहियोंको हिम्मत बँधाये। यह हमारा धर्म है। यदि आप मात्र इतना कर्तव्य निभायेंगे तो प्रतिज्ञा लेनेवाले लोग अपनी प्रतिज्ञापर दृढ़तापूर्वक कायम रहेंगे। हमें देशको इस प्रकार गढ़कर तैयार करना है। हमें सत्य और न्यायको भूली हुई सरकारको सच्चा मार्ग दिखाना है। यही इस लड़ाईका उद्देश्य है। दस रुपये लगानकी वसूलीके लिए दस हजार रुपयेकी जमीन जब्त कर लेना सरासर अन्याय ही है। यदि सर कार ऐसा घोर अन्याय करके ऐसा अनिष्टकारी कदम उठायेगी तो मैं स्वयं इस सरकारके विरुद्ध विद्रोह करूँगा और आपको भी विद्रोह करनेकी सलाह दूंगा। यदि सरकार दस-पाँच रुपयेके लिए ऐसा करे तो यह मेरी समझमें नहीं आता। आजकल सरकार धमकियोंसे शासन चलाती है, भयसे राज्य चलता है। यह खयाल गलत है। हमें इस भयसे पस्त नहीं होना चाहिए। हमें प्रकृतिको न्यायवृत्तिपर विश्वास है, इसलिए आप निश्चिन्त रहें। यदि सरकार भैंसे कुर्क कर ले तो भी आप उसका विरोध न करें। इसी प्रकार आप अपने हाथसे उसे कुछ दें भी नहीं। हम आजतक उसे लगान देते आये हैं, उससे डरते आये हैं और अपने मन-ही-मन कुढ़ते आये हैं । फलस्वरूप हम पतित हो गये हैं। खेड़ामें सोनेकी फसल होती है और उसमें वीर लोग बसते हैं। संवत् १९५६के अकालके[१] बावजूद उन्होंने अपनी जमीनको दिन-रात मेहनत करके हरा-भरा बना दिया

  1. सन् १९०० के लगभग देशव्यापी अकाल पड़ा था, जिसे लोग छप्पनके अकालके नामसे अभी तक याद करते हैं।