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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। ऐसे लोगोंकी जमीनोंमें से और चेहरोंसे चमक कैसे चली गई? इसका कारण यही है कि लोग सरकारसे डरने लगे हैं। यह लड़ाई लोगोंको इस भयसे मुक्त करनेके लिए ही है। खेड़ा जिलेमें यह सत्याग्रहकी लड़ाई सफल होगी तो उसका प्रभाव भारतमें अन्यत्र पड़ेगा। हमारा उद्धार हमारे अपने हाथमें ही है। हम अपने कष्टोंका निवारण अपने पुरुषार्थ से ही कर सकेंगे।

इस लड़ाईमें हम एक अन्य महान् मन्त्र सीखेंगे और वह यह है कि हमें हथियारसे नहीं लड़ना है, बन्दूक या भाला नहीं उठाना है; बल्कि सत्यसे लड़ना है। जिसके पास सत्य-रूपी हथियार है उसे किसी दूसरे हथियारकी जरूरत नहीं है। यदि हम भय त्यागकर सत्यसे लड़ेंगे तो हमें महान् सिद्धि मिलेगी।

मैं सुनता हूँ कि सरकारके विरुद्ध लड़ी जानेवाली सत्याग्रहकी इस लड़ाईमें कुछ असत्य चलता है। किसानोंसे हाकिम पूछता है कि आप लगानका पैसा क्यों नहीं देते तो वे फसल चार आनेसे कम है, यह कहने के बजाय भयके कारण दूसरे ही बहाने बनाते हैं। तहसीलदार या कलक्टर आते हैं तो उनके सामने हमें अशिष्टता न दिखानी चाहिए। वे अधिकारपूर्वक कोई चीज बेगारमें माँगें तो हम उन्हें न दें। वे हमें कोई चीज देनेका हुक्म दे ही नहीं सकते। किन्तु हमें उनका आदर-सत्कार करना तो न भूलना चाहिए। हम उन्हें कोई जरूरी चीज मुफ्त न दें किन्तु पूरा दाम लेकर दे दें। हमें विनयका त्याग न करना चाहिए। कल मुझे एक शिकायत यह मिली थी कि लोग दाम देनेपर भी चीजें नहीं देते? सत्याग्रहकी लड़ाई में ऐसा कैसे किया जा सकता है? इससे मुझे दुःख हुआ। जो जुल्मसे अपना बचाव करना चाहता है वह दूसरेपर जुल्म कैसे कर सकता है? तीसरी बात। कमिश्नर परसों तीन बजे नडियादमें तहसीलदारकी कचहरीमें आपसे कुछ कहना चाहते हैं। मेरी सलाह है कि आप सब वहाँ जायें। वे आपसे यह भी कहेंगे कि मैं आपको गलत रास्तेपर ले जा रहा हूँ। मैं आपको गलत रास्तेपर ले जा रहा हूँ या सही रास्तेपर, इसका निर्णय मैं नहीं कर सकता; मैं तो आपको मुझे जो सच लगता है वही कहता हूँ। यदि आपको यह सत्य लगता हो तो आप एक स्वरसे कहें कि गांधीकी सलाह माननेसे हमारी प्रतिष्ठा बढ़ती है। और हम अपने अधिकारोंकी रक्षा कर सके हैं। ऐसा कहनेसे श्री प्रैट नाराज न होंगे। वे समझते हैं कि लोगोंको कष्ट हो तो उन्हें शिकायत करनेका अधिकार है। कष्ट सहकर कष्टोंसे मुक्त होनेका नाम सत्याग्रह है। आप सब निर्भय होकर कमिश्नरसे यह कहें: “हमें अपनी जमीनें, अपने ढोर-डंगर, या अपने गहने अपनी प्रतिज्ञा, प्रतिष्ठा या अपने धर्मसे अधिक प्यारे नहीं हैं। हमने आपसे प्रार्थना की और बार-बार कहा कि फसल चार आनेसे कम हुई है। सरकारी कानून कहता है कि फसल चार आनेसे कम हो तो लगान मुलतवी कर दिया जाना चाहिए। आपने तलाटीको बात मानी, और हमारी नहीं मानी। अब इस बात को मनवानेका हमारे पास एक ही मार्ग है और वह यह है कि हम अपने हाथसे लगान न दें।” आप सभी सभामें जायें, कमिश्नर जो कुछ कहें उसे ध्यानसे सुनें और यदि वे बोलनेकी अनुमति दें तो बोलें। उसके बाद आप हिन्दू अनाथाश्रममें आ जायें। वहाँ हम विचार करेंगे। कोई भी मनुष्य डरे, यह सरकारकी इच्छा नहीं है। अब हमने स्वराज्यका झंडा फहरा दिया है। हमें स्वराज्य अपने हाथोंसे लेना है।