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भाषण: वड़ोदके सत्याग्रहियोंके सम्मुख

यदि हम केवल निर्भय बनेंगे तो हमें स्वराज्य अवश्य मिलेगा। कुछ भी हो जाये, आप सरकारी लगान न दें। बहनें अपने पतियोंको हिम्मत बँधायें।[१] किसीको कुछ पूछना हो तो वह भले ही पूछे और अपनी शंकाका समाधान करा ले। यह मामला ऐसा है कि सभीको समझकर और सचेत होकर चलना चाहिए।

[गुजरातीसे]
खेड़ा सत्याग्रह
 

२२४. भाषण: वड़ोदके सत्याग्रहियोंके सम्मुख[२]

अप्रैल ११, १९१८

ज्यों-ज्यों दिन जाते हैं, हमारी कसौटी कड़ी होती जाती है। मैं आज कमिश्नरसे मिलकर अहमदाबादसे चला ही आ रहा हूँ। उनसे एक घंटे तक बातें होती रहीं। उन्होंने नडियादमें की जानेवाली सार्वजनिक सभाका जिक्र किया। मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि किसान सभामें अवश्य आयेंगे। मुझे आशा है कि जिन किसानोंने लगान नहीं दिया है वे सभी सभामें जायेंगे और कमिश्नरकी सलाहको सुनेंगे। कमिश्नर शायद कहेंगे कि फसल मारी जाये तो भी सरकारको लगान देना लोगोंका कर्त्तव्य है। सम्भव है, उनका कहना ठीक हो। मैं तो आपसे इतना ही कहूँगा कि आपने प्रतिज्ञा ली है और आपको उसका पालन अन्ततक करना चाहिए। आप उन्हें अथसे इतितक सब इतिहास कह सुनायें। यदि आपको अपनी प्रतिज्ञाका अभिमान होगा तो आप उनके सम्मुख दृढ़ता-पूर्वक अपना पक्ष रखेंगे। आपने प्रतिज्ञा क्यों ली है, समझकर ली है या बिना समझे और उससे आप क्या लाभ उठाना चाहते हैं, आप उन्हें ये सब बातें स्पष्ट रूपसे बता दीजिएगा।

यह लड़ाई इस साल हमें लगान न देना पड़े, इसी उद्देश्यसे नहीं लड़ी जा रही है। मैं यह बात हर जगह कहता आया हूँ। इस संघर्षसे हमें सरकारको यह बता देना है कि सरकारको जनताका सम्मान करना ही चाहिए। जनताका विरोध करके कोई राजा राज्य नहीं कर सकता। इस सत्यको सिद्ध कर दिखाना मैंने अपने जीवनका मुख्य कार्य माना है। हमारे लोग निस्तेज हो गये हैं। उनका धन निचोड़ लिया गया है। वे निष्प्रभ हो गये हैं।[३] मुझे एक उपमा बार-बार याद आती है। जैसे बैलके सम्मुख मोटर

  1. १८-४-१९१८ के बाम्बे क्रॉनिकलमें गांधीजीका यह वाक्य उद्धृत किया गया है: “आप अपने पोतिथों, पुत्रों और भाइयोंको हिम्मत बँधायें, जैसा कि पुराने जमानेकी स्त्रियों किया करती थीं, और उन्हें अपनी प्रतिज्ञापर दृढ़ रखें।”
  2. यह सभा आनन्द ताल्लुकेके वड़ोद गाँवकी धर्मशाला में हुई थी और इसमें आसपास के गाँवोंके लोग बहुत बड़ी संख्या में आये थे।
  3. बॉम्बे क्रॉनिकल, १६-४-१९१८ और न्यू इन्डिया, १७-४-१९१८ में छपी रिपोटाके अनुसार गांधीजीने यहाँ कहा: “देशके लोग निर्वीर्थ हो गये हैं और उनके सम्मुख एकमात्र मार्ग यह रह गया है कि वे उस घोर संकटमें जबतक हैं तबतक अपने आधारको दृढतापूर्वक पकड़े रहें।”