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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


छोटालालसे[१] कहना कि उसकी कलम फिर थक गई मालूम होती है। मुझे बुनाईकी अधिक तफसील भेजना।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 

२२७. पत्र: शिवदास और पोपटलालको

नडियाद
चैत्र सुदी १ [ अप्रैल १२, १९१८]

भाईश्री शिवदास[२],

तुम्हारा पत्र और पोस्टकार्ड, दोनों मिल गये हैं। तुम्हें दस रुपये भेज देनेके लिए उन्हें लिख दिया है। यदि इतनेसे काम न चले तो मुझे लिखना। अपनी दैनंदिनी लिखा करो। क्या प्लेग वहाँ अबतक फैला है?

भाई पोपटलाल[३],

तुम्हारी पंक्तियाँ पढ़ीं; तुम परसे मेरा विश्वास उठा नहीं है। वहाँ क्या कर रहे हो? आँखका क्या हाल है सो लिखना। फिर वहाँ जो काम तुम्हारे करने योग्य होगा सो सौंपूंगा।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

[पुनश्च]

भाई मोतीलालका कुटुम्ब जितनी जल्दी आ जाये उतना अच्छा।

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २८५७) से।

 
  1. सावरमती आश्रम के एक सदस्य जो चम्पारनमें बरहरवाकी शालासे सम्बद्ध थे। वे बुनाई सिखाते एवं हिन्दी पढ़ाते थे।
  2. शिवदास चतुर्भुज परीख, जो बादमें स्वामी शिवानन्द के नामसे जाने जाते थे; काठियावाद के सार्वजनिक कार्यकर्ता।
  3. सौराष्ट्रके रचनात्मक कार्यकर्ता।