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२२८. पत्र: बलवन्तराय ठाकोरको

[नडियाद]
अप्रैल १२, १९१८

भाईश्री बलवन्तरायजी,[१]

आपका पत्र मिला। उससे मेरे प्रति आपकी प्रीति प्रकट होती है। इसके लिए मैं कृतज्ञ हूँ। भाई नटराजनने[२] जल्दीमें राय बनाई है, यह मैंने उन्हें बता दिया है। आपकी दलीलोंका खण्डन करने के बजाय मैं आपको यह समझा दूँ कि मैं ‘सत्याग्रह’ किसे कहता हूँ। यद्यपि मैं ‘निष्क्रिय प्रतिरोध’ [पैसिव रेजिस्टेंस] शब्दोंको काममें लेता हूँ, किन्तु वे मेरे आशयके सूचक नहीं हैं। आप अंग्रेजी ढंगके निष्क्रिय प्रतिरोधको भूल जाइए। जिस नियमके अनुसार हम कुटुम्ब में बरतते हैं, उसी नियमको मैं राजनैतिक मामलोंमें लागू करता हूँ। मैं भारत में देखता हूँ कि लोग भयसे अभिभूत होकर बरतते हैं, भयसे सच नहीं बोलते, सरकारको धोखा देते हैं और स्वयंको धोखा देते हैं। पुलिसका छोटे-से-छोटा कर्मचारी एक बड़े धनीकी लाज लूट सकता है। मेरे खयालसे इस स्थितिसे मुक्त होना सभी नेताओंका धर्म है। अधिकारी जनताकी बात नहीं मानते। वे जो कुछ करते हैं उसीको ईश्वरीय आदेश समझते हैं और यह मानते हैं कि उसका विरोध हरगिज नहीं किया जा सकता। इस मान्यतासे उन्हें मुक्त करने में उनकी सेवा है और इसलिए राज्यकी सेवा है। इसीलिए में जहाँ-जहाँ लोगोंको भयसे अन्यायके अधीन होता देखता हूँ, वहाँ-वहाँ उन्हें सलाह देता हूँ कि बलात् लादे हुए दुःखोंसे मुक्तिका उपाय ज्ञान-पूर्वक दुःख सहना है। यही सत्याग्रह है। दुःखोंसे मुक्तिके लिए दुःख देना दुराग्रह और पशुबल है। बैलको जब दुःख होता है, तब वह लात मारता है। मनुष्यको जब दुःख हो, तब उसे आत्मबलसे दुःखका निवारण करते हुए दुःख सहना चाहिए।

खेड़ा जिलेके लोगोंपर ऐसा महान् संकट इसी बार नहीं आया है। उन्होंने पहले भी बहुत कष्ट सहे हैं। सामान्य स्त्रियाँ भी मेरी पत्नीसे इस तरहकी बातें करती हैं। इस बार लोगोंने लगानका कष्ट बताया। अगर वे लगान अदा करेंगे तो अपनी इच्छासे नहीं; बल्कि डरसे करेंगे। इसके लिए बहुतोंको अपने मवेशी बेचने और कीमती पेड़ काटने पड़ेंगे। यह दुःख हम कैसे देख सकते हैं? मैंने यह अपनी आँखोंसे देखा है। इसके निवारणका उपाय क्या है? अर्जियाँ दूँ? अर्जियाँ तो दे चुका। नटराजन कहते हैं: वाइसरायके पास जाओ, इंग्लैंड जाओ। इससे लोगोंको क्या राहत मिलेगी? तबतक तो पेड़ कट चुकेंगे और रुपया दिया जा चुकेगा। उसके बाद पुकार करनेसे क्या लाभ? समझनेकी बात है कि यह लड़ाई कानून बदलवानेके निमित्त नहीं है, बल्कि कानूनके

  1. प्रो० बलवन्तराष कल्याणराय ठाकोर, गांधीजीके सहपाठी, गुजराती भाषा तथा साहित्यके विद्वान् और लेखक।
  2. यहाँ कामाक्षी नटराजनका उल्लेख है, देखिए “पत्र: के० नटराजनको”, ५-४-१९१८ से पूर्व।