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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अमलके विरुद्ध है। अपराधीको फाँसीपर चढ़ा दिया जाये, उसके बाद अपील करनेका क्या प्रयोजन? इस तरह तो कितने ही निर्दोष मनुष्य फाँसीपर चढ़ गये हैं, और ऐसा हमारी उदासीनतासे हुआ है। हमारे पास दो ही उपाय थे। जो लोग लगान वसूल करने आयें, उन्हें डंडा मारकर दूर हटा दें या उनसे विनयपूर्वक कहें कि ‘हमें लगान नहीं देना है।’ फिर भी वे लगान तो ले ही जायेंगे, तब मैंने क्या बचाव किया― ऐसा सवाल तो आपके मनमें नहीं उठता? उठे, तो शुरूमें ही मैंने उसका उत्तर दे दिया है।

इस लड़ाई में अनायास लोगोंको धर्म, नीति, एकता, सत्य और अहिंसाकी तालीम मिलती है और सरकारको लोकमतके आदरकी। इसमें द्वेषभावकी गुंजाइश ही नहीं। सरकारको दबाकर न्याय नहीं करवाना है; उसकी न्याय-वृत्ति जाग्रत करके न्याय करवाना है। इसका परिणाम अच्छा होगा। इससे अन्तमें आत्माका विकास ही होगा। यदि लोग कमजोर होने के कारण हार जायेंगे तो भी क्या होगा? किया हुआ तप नष्ट होता ही नहीं। लोग गिरेंगे तो भी चढ़नेके लिए ही।

‘नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्॥’

यदि अब भी कोई गुत्थी रह जाये, तो फिर पूछें।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 

२२९. भाषण: नडियादमें

अप्रैल १२, १९१८

जो भाई यहाँ आये हैं उन्होंने अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। जो-कुछ कहना था, कमिश्नरसे वे वह सब कुछ साहसके साथ कह आये। मेरे विचारसे यह हमारी जीत है। इस लड़ाईका उद्देश्य लोगोंमें अधिकारियोंको बराबरीका मानकर मित्रभावसे अपनी बात उनसे कह सकनेकी हिम्मत पैदा करना है। सरकारसे अपनी माँग मनवाना इस लड़ाईका हेतु है। कमिश्नरने मित्रभाव और मिठाससे बातें कीं, इसीको आप अपनी जीत समझें। दुःख सहकर भी न्याय और सत्यपर कायम रहना, जीतकी महत्ता इसीमें है। सरकार जमीनें जब्त कर लेगी, यह बात कमिश्नरने मुझसे कही थी, यद्यपि कही बहुत शिष्टतासे थी। मैंने भी उन्हें उतनी ही शिष्टतासे और मिठाससे उत्तर दिया कि वे जमीनें भले ही ले लें; किन्तु वे पचाई नहीं जा सकेंगी।

जब सरकार और लोगोंमें मतभेद हो जाये तब पंचका सिद्धान्त स्वीकार किया जाना चाहिए। हमारी लड़ाई इस सिद्धान्तको स्वीकार करवाने के लिए ही लड़ी जा रही है। धर्मकी दृष्टिसे देखें तो पंचके बिना काम नहीं चल सकता। सरकार और लोगोंका