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भाषण : बिहार छात्र-सम्मेलन में

तुम्हें उचित लगें, उन्हें भेजते रहो तो अच्छा हो। बिक्रीके लिए डॉक्टरकी[१] गुजराती पुस्तक भी वहाँ भेजो। बिक्रीकी रकम चाहें तो वे ही रखें। यहाँ उसकी प्रतियाँ पहुँच गई हैं।

प्रभुदासकी[२] तबीयत अभी तक क्यों ठीक नहीं हो पाई?

बापूके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें गुजरातीमें पोस्टकार्डपर लिखित मूल गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ५६४४) से।

सौजन्य : छगनलाल गांधी।

४. भाषण : बिहार छात्र-सम्मेलनमें[३]

[भागलपुर
अक्तूबर १५, १९१७]

छात्र-सम्मेलनकी इस बैठकका अध्यक्ष-पद मुझे देकर आप लोगोंने मुझे अपने प्रेमसे बाँध लिया है। पिछले पच्चीस वर्षोंसे विद्यार्थियोंके साथ मेरा घनिष्ठ सम्बन्ध रहता आया है। विद्यार्थियोंका पहला परिचय मुझे दक्षिण आफ्रिकामें हुआ था। इंग्लैंडमें भी मैं विद्यार्थियोंसे हमेशा मिलता रहता था।

भारत वापस आनेके बाद मैं विद्यार्थियोंसे जगह-जगह मिलता रहा हूँ। वे मेरे प्रति असीम प्रेम रखते हैं। आज मुझे अध्यक्षका पद देकर और हिन्दीमें व्याख्यान देने और सम्मेलनका काम हिन्दीमें चलानेकी अनुमति देकर आप विद्यार्थियोंने मेरे प्रति अपने प्रेमका परिचय दिया है। यदि मैं आपके इस प्रेमके लायक सिद्ध हो सका और विद्यार्थियों की कुछ सेवा कर सका तो मैं अपनेको कृतार्थ मानूँगा। इस सम्मेलनका काम इस प्रान्तकी भाषामें ही—और वही राष्ट्रभाषा भी है—करनेका निश्चय करके आपने दूरन्देशीसे काम लिया है। इसके लिए मैं आपको बधाई देता हूँ। मुझे आशा है कि आप लोग यह प्रथा जारी रखेंगे।

हमने मातृभाषाका अनादर किया है। इस पापका कड़वा फल हमें जरूर भोगना पड़ेगा। हममें और हमारे घरके लोगोंके बीच कितना ज्यादा व्यवधान पैदा हो गया है, इसके साक्षी इस सम्मेलनमें आनेवाले हम सभी हैं। हम जो-कुछ सीखते हैं वह अपनी माताओंको नहीं समझाते और न समझा सकते हैं। जो शिक्षा हमें मिलती है, उसका प्रचार हम अपने घरमें नहीं करते और न कर सकते हैं। ऐसा दु:खद

  1. डॉ॰ प्राणजीवन मेहता, लन्दनके विद्यार्थी-जीवनसे गांधीजीके मित्र।
  2. प्रभुदास गांधी, छगनलाल गांधीके पुत्र।
  3. सम्मेलन भागलपुरमें हुआ था और गांधीजीने उसकी अध्यक्षता की थी। मूल भाषण हिन्दीमें रहा होगा किन्तु उसकी रिपोर्ट उपलब्ध नहीं हो सकी। भाषणका प्रस्तुत पाठ महात्मा गांधीनी विचार सृष्टिमें संकलित गुजराती रूपान्तरका हिन्दी अनुवाद है।