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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लोगों की प्रार्थना सुनने से इनकार करते हैं तो तुम लोग भी लगान न देनेके अपने निश्चय-पर दृढ़ रहो, तो प्रजाका असन्तोष इस प्रकार खुले और स्वस्थ रूपमें प्रकट न होता; वह भीतर ही भीतर सुलगता रहता। अन्तमें कटुता पैदा होती। जो पुत्र अपने पिताके विरुद्ध मन-ही-मन कुढ़ता नहीं रहता, बल्कि स्पष्ट रूपसे और पूरी नम्रतापूर्वक पिताको बतला देता है कि आपकी आज्ञाका पालन मैं क्यों सचाईके साथ नहीं कर सकता, वही सुपुत्र है। मैं सरकार और जनताके सम्बन्धोंपर भी यही नियम लागू करता हूँ। कभी ऐसा कोई समय नहीं होता जब कि मनुष्यको अपना अन्तःकरण ताकपर रख देना पड़े। बल्कि किस तरह बुद्धिमान् पिता सहजमें और विशेषतः ऐसे अवसरपर जब कि परिवारपर बाहरके किसी प्रकारके संकटकी सम्भावना हो, जल्दीसे अपने पुत्रकी बात मान लेता है और उसे रुष्ट या असन्तुष्ट नहीं करता उसी प्रकार समझदार सरकार भी अपनी प्रजाको नाराज नहीं करेगी, बल्कि चटपट उसकी बात मान लेगी। युद्धके कारण अफसरोंको इस बातकी खुली छूट नहीं मिल सकती कि वे रैयतको अपनी ऐसी आज्ञाओंके पालनके लिए भी विवश करें जो उसकी समझमें अनुचित और अन्यायपूर्ण हों।

लगानकी बाकी रकम केवल चार लाख रुपये है। लेकिन इतनी ही रकमके लिए कमिश्नरने यह धमकी दी है कि रैयतकी तीन करोड़ रुपये से अधिक मूल्यकी अथवा डेढ़ लाख एकड़ जमीन जब्त कर ली जायेगी और जिनकी जमीन जब्त होगी उन्हें अथवा उनके बीवी-बच्चोंको फिर कभी खेड़ामें कोई जमीन लेने ही न दी जायेगी। कमिश्नरकी इस धमकीने रैयतका निश्चय और भी दृढ़ बना दिया है। कमिश्नर खेतिहरोंको एक ही साँसमें गुमराह भी कहते हैं और दुराग्रही भी। उनके ये शब्द कितने गम्भीर हैं:

यह मत समझो कि हमारे मामलतदार और हमारे तलाटी लोग तुम्हारी चल-सम्पत्तिको जब्त और कुर्क करके निर्धारित लगान वसूल करेंगे। हम इतनी झंझटमें नहीं पड़ेंगे। हमारे अफसरानका वक्त कीमती है। तुम्हारे नकद रुपया भरनेसे ही हमारा खजाना भर सकता है। इसे धमकी मत मानो। इतनी बात समझ लो कि माता-पिता कभी भी बच्चोंको धमकी नहीं देते। वे केवल सलाह देते हैं। लेकिन अगर तुम बकाया अदा नहीं करोगे तो तुम्हारी जमीन जब्त कर ली जायेगी। बहुत-से लोग कहते हैं कि ऐसा नहीं होगा। पर मैं कहता हूँ कि ऐसा होगा। मुझे प्रतिज्ञा करनेकी जरूरत नहीं। मैं जो कह रहा हूँ उसे करके दिखा दूँगा। जो लोग लगान नहीं भरेंगे, उनकी जमीन जब्त कर ली जायेगी। अवज्ञा करनेवालोंको भविष्यमें भी कोई जमीन नहीं मिलेगी। सरकार उनके नाम रैयतके रेकार्डमें नहीं देखना चाहती। उनमें से जिनके नाम निकल जायेंगे वे हमेशा के लिए निकाल दिये जायेंगे।

कमिश्नर साहबकी इस प्रतिहिंसा एवं आतंकपूर्ण भावनाके विरुद्ध जीवन- पर्यन्त संघर्ष करना प्रत्येक राजनिष्ठ नागरिकका पवित्र कर्त्तव्य है। कमिश्नर साहबने यह कहकर कि हड़तालियोंने जानबूझकर अपनी प्रतिज्ञा तोड़ी थी, अहमदाबादके हड़तालियों और मेरे साथ भारी ज्यादती की है। जिस सभामें समझौता हुआ था उसमें वे स्वयं उपस्थित थे। उनका अपना यह खयाल तो हो सकता था कि हड़तालियोंने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ी थी।