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पत्र: नायकाके निवासियोंको

(हालाँकि सभामें उनके भाषणसे इससे उलटी ही ध्वनि निकलती थी) परन्तु इसका तो कोई प्रमाण नहीं कि हड़तालियोंने जान-बूझकर प्रतिज्ञा तोड़ी थी। इसके ठीक विपरीत, उन्होंने अपनी माँगके अनुसार पहले दिन वेतन मिलनेपर काम शुरू करके अपनी प्रतिज्ञा पूरी की थी, और वेतनका प्रश्न अन्तिम निर्णयके लिए पंच-फँसलेको सौंप दिया गया था। हड़तालियोंने ही पंच-फैसलेका सुझाव रखा था जिसे मिल-मालिकोंने ठुकरा दिया था।

संघर्षका मुद्दा ही असलमें वेतनमें ३५ प्रतिशत वृद्धि या पंच-फैसले द्वारा निर्धारित वृद्धि कराना था। उनकी यह माँग मंजूर हो चुकी थी। इसलिए मुझे खेदके साथ कहना पड़ता है कि ऐसी दशामें हड़तालियोंको और मुझे इस तरहका ताना देना नैतिक नहीं है।

आपका,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, १७-४-१९१८
 

२३२. पत्र: नायकाके निवासियोंको

अप्रैल १६, १९१८

[भाइयो,]

आपमें से २५ लोगोंकी जमीनें जब्त हो जानेका समाचार मैंने अभी-अभी सुना है। अगर ऐसा हुआ हो, तो मैं आपकी बारी पहले आनेपर आपको बधाई देता हूँ। मैं मानता हूँ कि जो जमीनें जब्त हुई हैं, वे कागजोंमें ही जब्त रहेंगी। फिर भी, आपने तो इन सभी दुःखोंको सहनेकी प्रतिज्ञा ली है; इसलिए मुझे आपको दिलासा देनेकी जरूरत नहीं रह जाती। आपको तो मैं बधाई ही देता हूँ।[१]

[आपका,]

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४
 
  1. इसका अनुवाद २३-४-१९१८ के न्यू इंडियामें भी छपा था ।