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२३३. भाषण: ओडमें

अप्रैल १६, १९१८

हमने किसी व्यक्तिकी याद की और यदि वह अचानक आ गया तो हम कहा करते हैं, भाई तुम सौ बरस जियोगे। यहाँ भी ऐसा ही हुआ है। हमने श्री वल्लभभाईको जिस क्षण याद किया उसी क्षण वे यहाँ आ पहुँचे। मैं आपसे गत सप्ताह मिलनेकी आशा करता था। किन्तु मैं बम्बई चला गया था और अहमदाबादमें श्री प्रैटसे मिलनेके लिए रुक गया, इसलिए आ नहीं सका। बम्बईमें जो बड़े हाकिम मिले उनसे मेरी बातचीत हुई। मैं आपको इस बातचीतका हाल बताऊँ इससे पहले आपके बारेमें नडियादमें जो कुछ सुना उसे बता दूँ। लोगोंने मुझसे यह कहा कि ओडके लोग बड़े उत्साही हैं; किन्तु उन्होंने अभीतक अपने उत्साह और बलका उपयोग अपने हितार्थ नहीं किया है; बल्कि पारस्परिक कलहमें किया है। फलस्वरूप खेड़ाकी भूमि जो उपजाऊ और सुन्दर है और जिसे आपके बाप-दादोंने स्वर्ण-भूमि बना दिया था, आपसकी दुराग्रहपूर्ण लड़ाईसे बरबाद हो गई।[१] जबतक यह स्थिति कायम है तबतक हम किसी तरहकी लड़ाई नहीं जीत सकते। आपने तो प्रतिज्ञा ली है कि आप अन्ततक जूझेंगे और न्याय प्राप्त करेंगे। मैं निश्चित रूपसे कहता हूँ कि हम पिछला वैर-भाव भुलाकर संगठित होकर रहेंगे तो हमारी जीत होगी।

श्री प्रैट, श्री कारमाइकेल और [सर जेम्स] डुबालेने अपने सिर हिला-हिलाकर हमारी लड़ाईका भारी विरोध किया है। बातचीतमें भी उन्होंने कहा, ‘आप खेड़ाके लोगोंको नहीं जानते। हम नहीं मानते कि इस लड़ाईसे वहाँके लोग आगे बढ़ेंगे, उन्नति करेंगे और नीतिवान् बनेंगे। इससे तो वे लोग उद्धत ही होंगे।’ माल-विभागके बड़े अधिकारियोंकी आपके सम्बन्ध में क्या राय है, यह मैं आपको बता रहा हूँ। आपने जो लड़ाई आरम्भ की है उसमें आपको आंशिक ही नहीं, पूर्ण सत्यका पालन करना चाहिए। प्रह्लादसे जब यह पूछा गया कि तुम्हारे भगवान् कहाँ हैं; तब उन्होंने उत्तर दिया “मेरे भगवान्ज लमें हैं, थलमें हैं, आकाशमें और पातालमें भी हैं। मुझे भगवान् दसों दिशाओंमें दिखाई देते हैं।” उसी प्रकार यदि हम दसों दिशाओं में सत्यके दर्शन करें तभी हम इस लड़ाईको सत्याग्रहकी लड़ाई कह सकते हैं। हम सार्वजनिक कार्य में एक तरहका और निजी व्यवहारमें दूसरी तरहका आचरण नहीं कर सकते। जैसे भगवान् सर्वव्यापक है वैसे ही सत्य भी सर्वव्यापक है। हम यह नहीं कह सकते कि भगवान् अमुक स्थानमें नहीं है। इसी प्रकार हम यह भी नहीं कह सकते कि सत्य अमुक स्थान में है और अमुक स्थानमें नहीं है।

  1. तारीख २० अप्रैल, १९१८ के बॉम्बे क्रॉनिकल में छपी खबरके अनुसार गांधीजीने कहा: “बरसोंसे आप लोग अपनी शक्ति और निडरताका उपयोग पारस्परिक कलहमें करते रहे हैं। एक बार उठें और संगठित हों एवं सशक्त तत्त्वोंका उपयोग सरकारके भयसे लड़नेमें करें, जो आप सबका संयुक्त शत्रु है।”