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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेनेवाला व्यक्ति जानता है। सूर्यकी गति बदली जा सकती है, परन्तु यह विचारपूवक ली गई उचित प्रतिज्ञा हरगिज नहीं बदली जा सकती।

मुझे दुःख है कि श्री प्रैटने अहमदाबादकी मिल-मजदूरोंकी हड़तालके बारेमें अपने भाषण में सचाईके विरुद्ध बात कही है। इसमें उन्होंने विनय, न्याय-मर्यादा और मित्रताका भंग किया है। मैं आशा करता हूँ कि उन्होंने यह दोष अनजान में किया है। यदि इस दुनिया में किसीने अपनी प्रतिज्ञाका पालन किया है, तो अहमदाबादके मिल-मजदूरोंने ही किया है। उन्होंने सदा यही कहा था कि पंच जो वेतन तय कर देंगे, उतना वेतन लेना वे मंजूर कर लेंगे। हड़तालके दिनोंमें मालिकोंने इस तत्त्वको अस्वीकार किया। इसीलिए मजदूरोंने पैंतीस फीसदी वृद्धिकी माँग की। उसके बाद भी उन्होंने पंच-निर्णय मान लेनेकी बातको अस्वीकार नहीं किया था। उन्होंने पहले दिनकी पैंतीस फीसदी वेतन वृद्धि ले ली और प्रतिज्ञा पूरी की। बादमें उसके लिए पंच मुकर्रर किये गये और मजदूरोंने मंजूर किया कि पंच जो वेतन तय कर देंगे, उसे वे ले लेंगे। यह तय हुआ कि इस बीच मालिकोंकी प्रस्तावित बीस प्रतिशत और मजदूरोंकी माँगी हुई पैंतीस प्रतिशतकी औसत वेतन वृद्धि ले ली जाये और पंच निर्णय के बाद उस निर्णय के अनुसार लेना-देना ठीक कर दिया जाये। इस प्रकार प्रतिज्ञाकी भावना कायम रखी गई। और कुछ भी हुआ हो परन्तु श्री प्रैट जैसा कहते हैं, मजदूरोंने जानबूझकर प्रतिज्ञा कदापि नहीं तोड़ी। प्रैट साहबको यदि यह मानना ही हो कि मजदूरोंने प्रतिज्ञा तोड़ी, तो वे इसे मान सकते हैं। इसके लिए वे स्वतन्त्र हैं। परन्तु मान्यता तो मजदूरोंकी ही ठीक है। इस तथ्यको श्री प्रैट उलटे रूपमें पेश करते हैं। जब समझौतेकी शर्तें मजदूरोंको समझाई गईं, तब श्री प्रैट मौजूद थे। प्रतिज्ञाका पालन किस तरह किया गया, यह समझाया गया और मजदूरोंने समझौतेका स्वागत भी किया। इन सब बातोंके प्रैट महोदय साक्षी थे। उन्होंने इस समझौते के बारेमें यह भाषण दिया था:

आप लोगोंके बीच समझौता हो रहा है, इससे मुझे बहुत प्रसन्नता है। मुझे पूरा विश्वास है कि जबतक आप श्री गांधीकी सलाह लेंगे और उनका कहना मानेंगे, तबतक आपका सुधार होगा और आपको न्याय मिलेगा। आपको याद रखना चाहिए कि आपके लिए श्री गांधी और उनके सहायक स्त्री-पुरुषोंने बहुत परिश्रम किया है, कष्ट सहे हैं और आपके प्रति प्रेम दिखाया है।

इतनेपर भी वे प्रतिज्ञा-भंगकी बात करते हैं। उनकी यह बात मेरी तुच्छ बुद्धि समझ नहीं पाती।

कमिश्नर साहबने तो बहुत धमकियाँ दी हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि वे इन धमकियोंको सच साबित करेंगे। इसके लिए वे प्रतिज्ञा करनेवालोंकी सारी जमीन जब्त करेंगे और उनके वारिसोंको भी खेड़ा जिलेमें जमीनके मालिक बनने के अधिकारसे वंचित कर देंगे।

उनका यह कथन भयंकर, क्रूरतापूर्ण और कठोर है। मेरी समझमें तीव्रतम रोषके वशीभूत होकर वे ऐसा कह रहे हैं। जब कमिश्नर साहबका रोष शान्त होगा, तब ऐसे घोर कथनके लिए उन्हें पश्चात्ताप होगा। सरकार और जनताके बीचके सम्बन्धोंको