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भाषण : बिहार छात्र-सम्मेलनमें

लायक काम यह भी है कि वे जो-कुछ स्कूलमें पढ़ें, उसका अनुवाद हिन्दीमें करते रहें, जहाँतक हो सके उसका प्रचार घरमें करें और आपसके व्यवहारमें मातृभाषाका ही उपयोग करनेकी प्रतिज्ञा कर लें। एक बिहारी दूसरे बिहारीके साथ अंग्रेजी भाषामें पत्रव्यवहार करे, यह मेरे लिए तो असह्य है। मैंने लाखों अंग्रेजोंको बातचीत करते सुना है। वे दूसरी भाषाएँ जानते हैं, किन्तु मैने दो अंग्रेजोंको आपसमें पराई भाषामें बोलते नहीं सुना। जो अत्याचार हम भारतमें करते हैं, उसका उदाहरण दुनियाके इतिहासमें कभी कहीं नहीं मिलेगा।

एक वेदान्ती कवि लिख गया है कि जो शिक्षा विचार करना नहीं सिखाती वह व्यर्थ है। किन्तु ऊपर बताये हुए कारणोंसे विद्यार्थियोंका जीवन बहुत-कुछ विचारशून्य दिखाई देता है। विद्यार्थी तेजहीन हो गये हैं, उनमें ताजगी दिखाई नहीं देती और वे अधिकतर निरुत्साही दृष्टिगोचर होते हैं।

मुझे अंग्रेजी भाषासे वैर नहीं है। इस भाषाका भण्डार अटूट है। यह राजभाषा है और ज्ञानकी निधिसे भरी-पुरी है। फिर भी मेरी यह राय है कि हिन्दुस्तानके सब लोगोंको इसे सीखनेकी जरूरत नहीं। किन्तु इस बारेमें मैं यहाँ ज्यादा नहीं कहना चाहता। विद्यार्थी अंग्रेजी पढ़ रहे हैं, और जबतक दूसरी योजना प्रचलित नहीं होती और आज की शालाओंमें परिवर्तन नहीं होता, तबतक विद्यार्थियोंके लिए दूसरा कोई उपाय नहीं। इसलिए मैं मातृभाषाके इस बड़े विषयको यहीं समाप्त कर देता हूँ। मैं इतनी ही प्रार्थना करूँगा कि आपसके व्यवहारमें और जहाँ-जहाँ हो सके वहाँ सब लोग मातृभाषाका ही उपयोग करें; और विद्यार्थियोंके सिवा जो महाशय यहाँ आये हैं, वे मातृभाषाको शिक्षाका माध्यम बनानेका भगीरथ प्रयत्न करें।

जैसा मैंने ऊपर कहा है, अधिकतर विद्यार्थी निरुत्साही दिखाई देते हैं। बहुत-से विद्यार्थियोंने मुझसे सवाल किया है कि 'मुझे क्या करना चाहिए? मैं देश-सेवा किस तरह कर सकता हूँ? आजीविकाके लिए मुझे क्या करना ठीक है?' मुझे मालूम हुआ है कि आजीविकाके लिए विद्यार्थियोंको बड़ी चिन्ता रहा करती है। इन प्रश्नोंका उत्तर सोचनेसे पहले यह विचार करना जरूरी है कि शिक्षाका उद्देश्य क्या है? हक्सलेने कहा है कि शिक्षाका उद्देश्य चरित्र-निर्माण है। भारतके ऋषि-मुनियोंने कहा है कि वेद आदि सारे शास्त्र जाननेपर भी यदि कोई आत्माको न पहचान सके, सब बन्धनोंसे मुक्त होनेके लायक न बन सके तो उसका ज्ञान बेकार है। दूसरा वचन यह है कि जिसने आत्माको जान लिया, उसने सब-कुछ जान लिया। अक्षरज्ञानके बिना भी आत्मज्ञान होना सम्भव है। पैगम्बर मुहम्मद साहबने अक्षरज्ञान नहीं पाया था। ईसा मसीहने किसी स्कूलमें शिक्षा नहीं ली थी। किन्तु यह कहना कि इन महात्माओंको आत्मज्ञान नहीं हुआ था, धृष्टता ही होगी। वे हमारे विद्यालयोंमें परीक्षा देने नहीं आये थे। फिर भी हम उन्हें पूज्य मानते हैं। विद्याका सब फल उन्हें मिल चुका था। वे महात्मा थे। उनकी देखा-देखी यदि हम स्कूल-कॉलेज छोड़ दें तो हम कहींके न रहें। किन्तु हमें भी अपनी आत्माका ज्ञान चारित्र्यसे ही मिल सकता है। चारित्र्य क्या है? सदाचारकी निशानी क्या है? सदाचारी पुरुष सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, अस्तेय,