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भाषण: रासमें ३३९

 

यदि दूसरी दृष्टिसे देखें तो सरकारकी वर्तमान नीति ऐसी है कि यह न लोगोंकी बात पूछती है और न उनके मतका आदर ही करती है। धारासभाओं, नगरपालिकाओं और अन्य सार्वजनिक संस्थाओंमें उसके व्यवहारका हमारा अनुभव यही है। क्योंकि उनके पीछे लोकमतका बल तो होता नहीं।[१] हम जब सिपाही जैसे छोटे कर्मचारीको देखकर डर जाते हैं और चौकीदार आता दिखाई दे तो तुरन्त भाग जाते हैं तब बड़े हाकिमोंसे

तो आँखें मिला ही कैसे सकते हैं। हम उनके सम्मुख एक शब्द भी नहीं बोल सकते। यह स्थिति पशुओंसे भी हीन है। पशु भी मारनेपर अड़ जाता है और हमारी इच्छाके वश नहीं होता। उनकी तुलनामें हमारी स्थिति कैसी है, इसपर विचार तो करें। इसलिए यदि हम अपनी मनुष्यता सिद्ध करना चाहते हैं तो हमें भय त्याग देना चाहिए। यदि हम ऐसा करेंगे तो इस लड़ाईमें विजयी होंगे। किसानोंने नडियादकी सभामें श्री प्रैटको साहसपूर्वक उत्तर दिया। इसी प्रकार गवर्नरको भी हम अपनी स्थिति बता सकें, इतना साहस हममें आना चाहिए। हमें उद्धततासे नहीं लड़ना है; हमें तो अपना आत्मबल खर्च करके लड़ना है, दुःख सहन करके जीतना है। यह एक सनातन दिव्य नियम है। हमारे धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि सुख भोगनेके लिए दुःख भोगने ही पड़ते हैं, तपस्या करनी ही पड़ती है। राजा दशरथको राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न जैसे पुत्र प्राप्त करने के लिए तपस्या करनी पड़ी थी। राजा नलने भी सत्य और आत्मसम्मानकी खातिर तपस्या की और असंख्य कष्ट सहे। इसी कारण हम प्रातःस्मरणीय पुण्यात्मा पुरुषोंका नाम जपते हैं। ये देवकथाएँ हमें अपने पूर्वजोंसे मिली हैं...।[२] हम दुःख सहन करके सत्य और अहिंसाके मार्गसे अपने दुःखोंकी निवृत्तिका प्रयत्न कर रहे हैं...[२] अब खेड़ा जिलेके लोगोंने संसारके सम्मुख इस सिद्धान्तके प्रतिपादनका बीड़ा उठाया है...।[२] हमारी फसलें चार आनेसे कम हुई हैं। इसलिए मालगुजारी कानुनके अनुसार सरकारको इस साल लगान मुलतवी कर देना चाहिए। श्री प्रैटका कहना है कि हमारे आँकड़े गलत हैं और वे लगान वसूल करना चाहते हैं। हम कहते हैं कि हमारी बात सौ फीसदी ठीक है और सरकारके आँकड़े गलत हैं। इसलिए सरकारको लगान मुलतवी करना चाहिए। इस प्रकार इस लड़ाईमें एक साधारण सा स्वार्थ [अवश्य] निहित है। किन्तु इसमें इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण एक यह मुद्दा समाविष्ट है कि सरकारको लोकमतका आदर करना सीखना चाहिए। इस लड़ाईसे लगान माफ होगा और प्रजाबलका मान भी होगा; यह कोई साधारण बात नहीं है। अतः हमें दुःख सहन करके अपनी टेक रखनी चाहिए। हमने बिना विचारे प्रतिज्ञा नहीं ली है। पूर्णतः विचार करने के बाद ही हमें यह बीड़ा उठाना चाहिए। जो प्रतिज्ञा शुद्ध हेतुसे लोकसंग्रहके निमित्त ली जाती है, वह चाहे सूर्य पूर्वके बजाय पश्चिममें उदित हो तब भी टूट नहीं सकती है। मेरी प्रार्थना है

 
  1. तारीख २२-४-१९१८ के बॉम्बे क्रॉनिकल और २४-४-१९१८ के न्यू इंडियामें छपे विवरणोंमें ऐसी ही बात कही गई है। उनमें यह वाक्य भी है: “और इनके साथ मतभेदकी गुंजाइश नहीं है।”
  2. २.० २.१ २.२ मूलमें ये स्थान रिक्त हैं।,